भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गारंटी / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
वही पंख, | वही पंख, | ||
वही प्राण-रक्षा की गारंटी । | वही प्राण-रक्षा की गारंटी । | ||
+ | |||
+ | लेकिन | ||
+ | पानी जहाँ गहरा, | ||
+ | बेहद गहरा हो- | ||
+ | दबाव के तले कोई भी दुर्ग | ||
+ | टिक न पाये... | ||
+ | |||
+ | वहाँ, | ||
+ | प्राणों की रक्षा का उपाय ! | ||
+ | किससे पूछूँ । | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
11:51, 2 अगस्त 2010 का अवतरण
पानी जहाँ बहुत अधिक
गहरा नहीं होता,
कुछ कीड़े वहाँ
अपने ही शरीर के रसायन
-गोया कि चूने-गारे-
से रच लेते हैं अपना घर ।
वही उनका शिविर,
वही स्लीपिंग बैग,
वही सफ़री झोला
वही कवच,
वही पंख,
वही प्राण-रक्षा की गारंटी ।
लेकिन
पानी जहाँ गहरा,
बेहद गहरा हो-
दबाव के तले कोई भी दुर्ग
टिक न पाये...
वहाँ,
प्राणों की रक्षा का उपाय !
किससे पूछूँ ।