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दो बदन
ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा रू <ref>आत्मा</ref>ताज़ा दम फूल<ref>ताज़ा खिले हुए फूल०</ref> पिछले पहरठंडी-ठंडी सबक रौ<ref>मंद गति से चलने वाली</ref> चमन की हवासर्फ़े मातम हुईकाली-काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार परएक पल के लिए रुक गईहमने देखा उन्हेंदिन में और रात मेंनूरो जुल्मात में::मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें::मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें::मयकदे की दरारों ने देखा उन्हेंअज़ अज़ल ता अबद<ref>दुनिया के पहले दिन से दुनिया के अंतिम दिन तक</ref>ये बता चारागरतेरी जन्बील<ref>थैले में</ref> मेंनुस्ख़-ए-कीमियाए मुहब्बत भी हैकुछ इलाज व मदावा-ए-उल्फ़त भी है ?इक चम्बेली के मड़वे तलेमयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ परदो बदन ।
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<ref>दुनिया</ref>