भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिस दिन से आए / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक }} {{KKCatNavgeet}} <poem> जिस दिन से आए उस दिन स…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
नाम नहीं लेते जाने का | नाम नहीं लेते जाने का | ||
घर की लिपी-पुती बैठक से | घर की लिपी-पुती बैठक से | ||
− | + | काम ले रहे तहख़ाने का | |
धक्के मार निकालूँ कैसे ? | धक्के मार निकालूँ कैसे ? | ||
ये मुझसे तगड़े हैं । | ये मुझसे तगड़े हैं । | ||
</poem> | </poem> |
20:34, 5 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
जिस दिन से आए
उस दिन से
घर में यहीं पड़े हैं
दुख कितने लंगड़े हैं ?
पैसे,
ऐसे अलमारे से
फूल चुरा ले जायें बच्चे
जैसे फुलवारी से
दंड नहीं दे पाता
यद्यपि-
रँगे हाथ पकड़े हैं ।
नाम नहीं लेते जाने का
घर की लिपी-पुती बैठक से
काम ले रहे तहख़ाने का
धक्के मार निकालूँ कैसे ?
ये मुझसे तगड़े हैं ।