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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
|संग्रह=
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal‎}}<poem>कहीं तो कारवाँ-ए-दर्द की मंज़िल ठहर जाएकिनारे आ लगे उम्र-ए-रवाँ या दिल ठहर जाए
कहीं तो कारवानअमाँ कैसी कि मौज-ए-दर्द की मंज़िल ठहर जाये<br>ख़ूँ अभी सर से नहीं गुज़रीकिनारे आ लगे उम्रगुज़र जाए तो शायद बाज़ू-ए-रवाँ या दिल क़ातिल ठहर जाये<br><br>जाए
अमाँ कैसी कि मौजकोई दम बादबाँ-ए-ख़ूँ अभी सर से नहीं गुज़री<br>कश्ती-ए-सहबा को तह रखोगुज़र जाये तो शायद बाज़ूज़रा ठहरो ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-क़ातिल महफ़िल ठहर जाये<br><br>जाए
कोई दम बादबान-ए-कश्ती-ए-सहबा को तह रखो<br>हमारी ख़मोशी बस दिल से लब तक एक वक़्फ़ा हैज़रा ठहरो ग़ुबार-ए-ख़ातिरये तूफ़ाँ है जो पल भर बस लब-ए-महफ़िल साहिल ठहर जाये<br><br>जाए
हमारी ख़मोशी बस दिल से लब तक एक वक़्फ़ा है<br>ये तूफ़ाँ है जो पल भर बस लब-ए-साहिल ठहर जाये<br><br> निगाह-ए-मुंतज़िर कब तक करेगी आईनाबंदी<br>कहीं तो दश्त-ए-ग़म में यार का महमिल ठहर जाये <br>जाए<br/poem>
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