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कहीं तो कारवान-ए-दर्द की मंज़िल ठहर जाये / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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कहीं तो कारवाँ-ए-दर्द की मंज़िल ठहर जाए
किनारे आ लगे उम्र-ए-रवाँ या दिल ठहर जाए

अमाँ कैसी कि मौज-ए-ख़ूँ अभी सर से नहीं गुज़री
गुज़र जाए तो शायद बाज़ू-ए-क़ातिल ठहर जाए

कोई दम बादबाँ-ए-कश्ती-ए-सहबा को तह रखो
ज़रा ठहरो ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-महफ़िल ठहर जाए

हमारी ख़मोशी बस दिल से लब तक एक वक़्फ़ा है
ये तूफ़ाँ है जो पल भर बस लब-ए-साहिल ठहर जाए

निगाह-ए-मुंतज़िर कब तक करेगी आईनाबंदी
कहीं तो दश्त-ए-ग़म में यार का महमिल ठहर जाए