|
|
(7 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 98 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | <div class='box_lk' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop_lk'><div></div></div> | + | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div class='boxheader_lk' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div> | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
− | <div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent_lk' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
| + | |
− | <!----BOX CONTENT STARTS------>
| + | |
− | <table width=100% style="background:transparent">
| + | |
− | <tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
| + | |
− | <td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
| + | |
− | <td> '''शीर्षक : इंद्रजाल<br>
| + | |
− | '''रचनाकार:''' [[अनिल विभाकर]]</td>
| + | |
− | </tr>
| + | |
− | </table>
| + | |
− | <pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
| + | |
− | यह है इंद्रप्रस्थ का इंद्रजाल
| + | |
− | इसमें भूखी-नंगी जनता सुनहरे सपने देखती है
| + | |
− | और महारानी के दर्शन भर से धन्य हो जाती है ।
| + | |
− | ग़रीब जनता गौर से निहारती है महारानी को
| + | |
− | उनमें उसे सत्यहरिश्चंद्र की आत्मा नज़र आती है
| + | |
− | उसे लगता है वे महारानी नहीं, सत्य हरिश्चंद्र की नया अवतार हैं
| + | |
| | | |
− | इंद्रप्रस्थ की रानी कहती है देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया
| + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | करोड़पतियों की संख्या तो बढ़ी
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> |
− | ग़रीबों की आबादी में भी इजाफ़ा हुआ
| + | |
− | रानी कहती है ग़रीबी और भ्रष्टाचार बेहद चिंता की बात
| + | |
− | जनता जवाब नहीं माँगती
| + | |
− | वह तो मंत्रमुग्ध है उनके सम्मोहन में
| + | |
| | | |
− | ऋषियों का यह देश चाणक्य का भी है
| + | <div style="text-align: center;"> |
− | चंद्रगुप्त का भी
| + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] |
− | सपने तो टूट ही रहे हैं
| + | </div> |
− | जिस दिन टूटेगा इंद्रजाल जनता पूछेगी
| + | |
− | रानी जी! फिर कलमाड़ी को क्यों बचाया ?
| + | |
− | और राजा को क्यों हटाया?
| + | |
− | महारानी जी! थरूर पर हुई थू-थू
| + | |
− | फिर भी कम नही हुई मनमोहन की मुस्कान
| + | |
− | ये सब के सब तो आप के ही प्यादे हैं न
| + | |
− | राज आपका
| + | |
− | बिसात आपकी प्यादे आपके
| + | |
− | संविधान में सरकार भले ही चलती है संसद से
| + | |
− | हक़ीक़त यह है कि दस जनपथ की इच्छा के बिना
| + | |
− | सात रेस कोर्स का पत्ता तक नहीं हिलता
| + | |
| | | |
− | रानी जी, पूरा देश जानता है
| + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> |
− | आपकी मुस्कान से ही मुस्कुराते हैं करोड़पति-अरबपति
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार |
− | आपके चहकने से आमजन हो जाता है मायूस
| + | अपरिचित पास आओ |
− | दरअसल सिर्फ़ कहने को जनपथ में रहती हैं आप
| + | |
− | भले ही इस देश में आपका अपना कोई घर-बार नहीं
| + | आँखों में सशंक जिज्ञासा |
− | हक़ीक़त में आप राजपथ की रानी हैं
| + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा |
− | तौर-तरीके और रहन-सहन से तो यही लगता है
| + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं |
− | आप इंद्रप्रस्थ की महारानी हैं ।
| + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा |
− |
| + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के |
− | समय आने दीजिए महारानी जी!
| + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ |
− | भूखी-नंगी जनता करेगी आपकी करतूतों का पूरा हिसाब
| + | |
− | पूछेगी क्या हुआ अफ़ज़ल का, कहाँ है कसाब ?
| + | सबमें अपनेपन की माया |
− | पूछेगी क्या संसद से भी बड़ा है होटल ताज ?
| + | अपने पन में जीवन आया |
− | महारानी जी यही है आपका राज ?
| + | </div> |
− |
| + | </div></div> |
− | ज़रूर टूटेगा एक दिन इंद्रजाल
| + | |
− | और भूखी-नंगी जनता को लगेगा
| + | |
− | आपमें नहीं बसती है सत्य हरिश्चंद्र की आत्मा ।</pre>
| + | |
− | <!----BOX CONTENT ENDS------>
| + | |
− | </div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div> | + | |