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कोई पर्दा नहीं है कुछ नहीं छुपाता हूँ | कोई पर्दा नहीं है कुछ नहीं छुपाता हूँ | ||
− | अनेक शेर | + | अनेक शेर मेरे ज़ाया हो गये फिर भी |
− | रदीफ़ , क़ाफ़िया , | + | रदीफ़, क़ाफ़िया, बहरो वज़न निभाता हूँ |
− | न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर ,मोमिन ही | + | न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर, मोमिन ही |
मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ | मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ | ||
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14:06, 17 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
हवा ख़िलाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ
हज़ार मुश्किलें हैं फिर भी मुस्कराता हूँ
सलाम आँधियाँ करती हैं मेरे ज़ज़्बों को
इक दिया बुझ गया तो दूसरा जलाता हूँ
मेरी दीवानगी का हाल मुझसे मत पूछो
बुझे न प्यास तो शोलों से लिपट जाता हूँ
ज़माना लाख है दुश्मन कोई परवाह नहीं
किया है प्यार तो फिर अंत तक निभाता हूँ
ख़़ु़शी मनाइये यारों कि सफ़र जा़री है
ग़म नहीं है कि हर क़दम पे चोट खाता हूँ
खुली क़िताब की मानिंद ज़िंदगी मेरी
कोई पर्दा नहीं है कुछ नहीं छुपाता हूँ
अनेक शेर मेरे ज़ाया हो गये फिर भी
रदीफ़, क़ाफ़िया, बहरो वज़न निभाता हूँ
न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर, मोमिन ही
मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ