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इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के<br/>
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इन्साफ़ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के
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यह देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
  
दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना<br />
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दुनिया के रंज सहना और कुछ मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना<br />
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सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के<br />
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रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
  
अपने हों या पराये, सब के लिए हो न्याय<br />
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अपने हों या पराये, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगि‍ज ना डगमगाए<br />
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देखो कदम तुम्हारा, हरगि‍ज़ न डगमगाए
रस्ते बडे कठि‍न हैं, चलना संभल-संभल के<br />
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रस्ते बड़े कठि‍न हैं, चलना सँभल-सँभल के
  
इन्सानियत के सर पे, इज्जत का ताज रखना<br />
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इन्सानियत के सर पे, इज़्ज़त का ताज रखना
तन मन की देकर भेंट, भारत की लाज रखना<br />
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तन-मन की भेंट देकर , भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के<br />
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जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के
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16:00, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

रचनाकार: शकील् बदयुनि                 

इन्साफ़ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के
यह देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के

दुनिया के रंज सहना और कुछ न मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के

अपने हों या पराये, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगि‍ज़ न डगमगाए
रस्ते बड़े कठि‍न हैं, चलना सँभल-सँभल के

इन्सानियत के सर पे, इज़्ज़त का ताज रखना
तन-मन की भेंट देकर , भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के