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"माँ की नींद / प्रदीपचन्द्र पांडे" के अवतरणों में अंतर

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17:44, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

बंदूक की गोली से भी
ऊँची भरी उड़ान
पक्षी ने

देर तक
उड़ता रहा आसमान में
सुनता रहा बादलों को
देखता रहा
चमकती बिजलियाँ

उस समय
घूम रही थी पृथ्वी
घूम रहा था समय
ठीक उसी समय टूटी
बूढ़ी माँ की नींद

क्यों टूटी
बूढ़ी माँ की नींद?