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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरिया<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रसूल]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना ।
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एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....
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हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान
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<div style="text-align: center;">
आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल....
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</div>
  
कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....
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अपरिचित पास आओ
</pre>
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<!----BOX CONTENT ENDS------>
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया