Last modified on 28 मई 2025, at 07:45

"अमलतास के झूमर / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} धरती तपती लोहे जैसी<br> गरम...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
इनके बदले में पत्ते भी<br>
 
इनके बदले में पत्ते भी<br>
  
तुमने सबके सब दान किये<br>
+
तुमने सबके सब दान किए<br>
  
 
किसके स्वागत में आतुर हो<br>
 
किसके स्वागत में आतुर हो<br>
 
  
 
तुम मिलने का अरमान लिये ? <br>
 
तुम मिलने का अरमान लिये ? <br>
पंक्ति 52: पंक्ति 51:
  
 
सब कुन्दन बन जाना  सीखें  ।<br>
 
सब कुन्दन बन जाना  सीखें  ।<br>
 +
 +
'''14 जून 2007'''

07:45, 28 मई 2025 के समय का अवतरण

धरती तपती लोहे जैसी

गरम थपेड़े लू भी मारे ।

अमलतास तुम किसके बल पर

खिल- खिल करते बाँह पसारे ।

पीले फूलों के गजरे तुम

भरी दुपहरी में लटकाए ।

चुप हैं राहें, सन्नाटा है

फिर भी तुम हो आस लगाए ।

कठिन तपस्या करके तुमने

यह रंग धूप से पाया है ।

इन गजरों को उसी धूप से

कहकर तुमने रँगवाया है ।

इनके बदले में पत्ते भी

तुमने सबके सब दान किए

किसके स्वागत में आतुर हो

तुम मिलने का अरमान लिये ?

तुझे देखकर तो लगता है –

जो जितना तप जाता है ।

इन सोने के झूमर –जैसी

खरी चमक वही पाता है ।

जीवन की कठिन दुपहरी में

तुझसे सब मुस्काना सीखें ।

घूँट –घूँट पी रंग धूप का

सब कुन्दन बन जाना सीखें ।

14 जून 2007