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<poem>
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'''पद 41 से 50 तक'''
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(41)
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कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
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मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करून-कथा चलाइ।1।
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दीन, सब अंगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ।
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नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।2।
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बुझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ।
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सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ।3।
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जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ।
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तरै तुलसिदास भव तव नाथ -गुन-गन-गाइ।4।
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(42)
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क्कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी।
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जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्यों, प्यास प्रेम-पानकी।1।
+
सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करूना-निधानकी।
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निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी।2।
+
बानि बिसारनसील है मानद अमानकी।
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तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी।3।
+
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(43)
+
 
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जयति
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सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म-पद विग्रह-व्यक्त लीलावतारी।
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विकल ब्रह्मादि, सुर, सि, संकोचवश, सिद्ध, संकोचवश, विमल गुण-गेह नर-देह -धारी।1।
+
जयति
+
कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य-फल चारू चारी।
+
वेद-बोधित करम -धरम-धरनीधेनु, विप्र-सेवक साधु-मोदकारी।2।
+
जयति
+
ऋषि-मखपाल, शमन-सज्जन-साल, शापवश मुनिवधू-पापहारी।
+
भंजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृृगुनाथ नतमाथ भारी।3।
+
जयति
+
धारमिक-धुर, धी रघुवीर गुरू-मातु-पितु-बंधु- वचनानुसारी।
+
चित्रकुटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन-विहारी।4।
+
जयति
+
पाकारिसुत-काक-करतुति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा।
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दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा।5।
+
जयति
+
खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट-मारीच-संहारकर्ता।
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गृन्ध्र-शबरी-भक्ति-विवश करूणासिंधु, चरित निरूपाधि, त्रिविधार्तिहर्ता ।6।
+
जयति
+
 
+
मद-अंध कुकबंध बधि, बालि बलशालि बधि, करन सुग्रीवराजा।
+
सुभट मर्कट-भालु-कटक-संघट सजत, नमत पदरावणानुत निवाजा।7।
+
जयति
+
पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु, काल-मन-अगम लई ललकि लंका।।
+
सकुल,सानुज,सदल दलित दशकंठ रण, लोक-लोकप किये रहित-शंका।8।
+
जयति
+
सौमित्र-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारूढ़ निज राजधानी।
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दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल, राम भे भूप वैदेहि रानी।9।।
+
 
+
(45)
+
 
+
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन
+
हरण भवभय दारूणं।
+
नवकंज लोचन ,कंज-मुख ,
+
कर-कंज पद कंजारूणं।
+
कंदर्प अगणित अमित छवि,
+
नवनील नीरद सुंदरं।
+
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि
+
नौमि जनक सुतावरं।।
+
भजु दीनबंधु दिनेश
+
दानव-दैत्य-वंश-निकंदनं।
+
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद
+
दशरथ-नंदनं।।
+
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू
+
उदारू अंग विभुषणं।
+
आजानुभुज शर-चाप-धर,
+
संग्राम-जित-खरदूषणं।।
+
इति वदति तुलसीदास शंकर-
+
शेष-मुनि-मन-रंजनं।
+
मम हृदय कंज निवास करू,
+
कामादि खल दल गंजनं।।
+
 
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(46)
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+
श्रीराम सदा
+
राम जपु, राम जपु, राम जपु, राम जपु, राम जपु, मूढ़ मन, बार बारं।
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सकल सौभाग्य-सुख-खानि जिय जानि शठ, मानि विश्वास वद वेदसारं।।
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कोशलेन्द्र नव-नीलकंजाभतनु, मदन-रिपु-कंजहृददि-चंचरीकं।
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जानकीरवन सुखभवन भुवनैकप्रभु, समर-भंजन, परम कारूनीकं।।
+
दनुज-वन-धूमधुज, पीन आजानुभुज, दंड-कोदंडवर चंड बानं।
+
अरूनकर चरण मुख नयन राजीव, गुन-अयन, बहु मयन-शोभा-निधानं।।
+
वासनावृंद-कैरव-दिवाकर, काम-क्रोध-मद-कंज-कानन-तुषारं।ं
+
लोभ अति मत्त नागेन्द्र पंचाननं भक्तहित हरण संसार-भारं।।
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केशवं, क्लेशहं, केश-वंदित पद-द्वंद्व मंदाकिनी-मूलभूतं।।
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सर्वदानंद-संदोह, मोहपहं, घोर-संसार-पाथोधि-पोतं।।
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शोक-संदेह-पाथोदपटलानिलं, पाप-पर्वत-कठिन-कुलिशरूपं।
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संतजन-कामधुक-धेनु, विश्रामप्रद, नाम कलि-कलुष-भंजन अनूपं।।
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धर्म-कल्पद्रुमाराम, हरिधाम-पभि संबलं, मूलमिदमेव एकं।
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भक्ति-वैराग्य-विज्ञान-शम-दान-दम, नाम आधीन साधक अनेकं।।
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तेन नप्तं, हुतं, दत्तमेवाखिलं, तेन सर्वं कृतं कर्मजालं।
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येन श्रीरामनामामृतं पानकृतमनिशमनवद्यमवलोक्य कालं।
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श्रवपच,खल, भिल्ल, यवनादि हरिलोकगत,
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नामबल विपुल मति मल न परसी।
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त्यागि सब आस, संत्रास, भवपास, असि निसित हरिनाम जपु दासतुलसी।।
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(47)
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ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन।
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हरन दुखदुंद गोबिेंद आनन्दघन।।
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अचरचर रूप हरि, सरबगत, सरबदा बसत, इति बासना धूप दीजै।
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दीप निजबोधगत-कोह-मद-मोह-तम, प्रौढ़ अभिमान चितबृत्ति छीजै।।
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भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम संतोषकारी।
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प्रेम तांबूल गत शूल संशय सकल, विपुल भव-बासना-बीजहारी।।
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अशुभ-शुभकर्म-घृतपुर्ण दशवर्तिका, त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं।
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भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली, अर्पि नीराजनं जगनिवासं।।
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बिमल हृदि-भवन कृत शांति-पर्यक शुभ, शयन विश्राम श्रीरामराया।
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क्षमा-करूणा प्रमुख तत्र परिचारिका, यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया।।
+
एहि आरती-निरत सनकादि, श्रुति , शेष, शिव, देवारिषि, अखिलमुनि तत्व-दरसी।
+
करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल, वदति इति अमलमति-दास तुलसी।।
+
 
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(49)
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देव-
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दनुज-बन-दहन, गुन-गहन, गोविंद नंदादि-आनंद-दातऽविनाशी।
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शंभु,शिव,रूद्र,शंकर,भयंकर, भीम,घोर, तेजायतन, क्रोध-राशी।1।
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अनँत, भगवंत-जगदंत-अंतक-त्रास-शमन,श्रीरमन, भुवनाभिरामं।
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भुधराधीश जगदीश ईशान विज्ञानघन, ज्ञान-कल्यान-धामं।2।
+
वामनाव्यक्त, पावन, परावर, विभो, प्रगट परमातमा, प्रकृति-स्वामी।
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चंद्रशेखर, शूलपाणि, हर, अनध, अज,अमित, अविछिन्न, वृषभेश-गामी।3।
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नीलजलदाभ तनु श्याम, बहु काम छवि राम राजीवलोचन कृपाला।
+
कंबु-कर्पूर-वपु धवल, निर्मल मौलि जटा, सुर-तटिनि,सित सुमन माला।4।
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वसन किंजल्कधर,चक्र-सारंग-रद-कंज-कौमोदकी अति विशाला।
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मार-करि-मत्त- मृगराज, त्रैनैन, हर, नौमि अपहरण संसार-जाला।5।
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कृष्ण,करूणाभवन, दवन कालीय खल, विपुल कंसादि निर्वशकारी।
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त्रिपुर-मद-भंगकर,मत्तज-चर्मधर, अन्धकोरग-ग्रसन पन्नगारी।6।
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ब्रह्म, व्यापक, अकल, सकल, पर परमहित, ग्यान गोतीत, गुण-वृत्ति- हर्ता।
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सिंधुसुत-गर्व-गिरि-वज्र, गौरीश, भव, दक्ष-मख अखिल विध्वंसकर्ता।7।
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भक्तिप्रिय, भक्तजन-कामधुक धेनु, हरि हरण दुुर्घट विकट विपति भारी।
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सुखद, नर्मद, वरद,विरज, अनवद्यऽखिल, विपिन-आनंद-वीथिन-विहारी।8।
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रूचिर हरिशंकरी नाम-मंत्रावली द्वंद्वदुख हरनि, आनंदखानी।
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विष्णु-शिव-लोक-सोपान-सम सर्वदा वदति तुलसीदास विशुद्ध बानी।9।
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