"माँ / कृष्ण कुमार यादव" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण कुमार यादव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> 'मेरा प्यार…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKAnthologyMaa}} | ||
<poem> | <poem> | ||
'मेरा प्यारा-सा बच्चा' | 'मेरा प्यारा-सा बच्चा' | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 17: | ||
सुबह से ही माँ जुट जाती है | सुबह से ही माँ जुट जाती है | ||
चौका-बर्तन में | चौका-बर्तन में | ||
− | कहीं बेटा भूखा न चला | + | कहीं बेटा भूखा न चला जाए। |
लड़कर आता है पड़ोसियों के बच्चों से | लड़कर आता है पड़ोसियों के बच्चों से | ||
माँ के आँचल में छुप जाता है | माँ के आँचल में छुप जाता है | ||
− | अब उसे कुछ नहीं हो | + | अब उसे कुछ नहीं हो सकता। |
बच्चा बड़ा होता जाता है | बच्चा बड़ा होता जाता है | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 29: | ||
बेटा कामयाबी पाता है | बेटा कामयाबी पाता है | ||
माँ भर लेती है उसे बाँहों में | माँ भर लेती है उसे बाँहों में | ||
− | अब बेटा नजरों से दूर हो | + | अब बेटा नजरों से दूर हो जाएगा। |
फिर एक दिन आता है | फिर एक दिन आता है | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 37: | ||
बहू के क़दमों का इंतज़ार है उसे | बहू के क़दमों का इंतज़ार है उसे | ||
आशीर्वाद देती है दोनों को | आशीर्वाद देती है दोनों को | ||
− | एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत के | + | एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत के लिए। |
माँ सिखाती है बहू को | माँ सिखाती है बहू को | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 44: | ||
बोलती है | बोलती है | ||
बहुत नाजों से पाला है इसे | बहुत नाजों से पाला है इसे | ||
− | अब तुम्हें ही देखना | + | अब तुम्हें ही देखना है। |
माँ की ख़ुशी भरी आँखों से | माँ की ख़ुशी भरी आँखों से | ||
आँसू की एक गरम बूँद | आँसू की एक गरम बूँद | ||
− | गिरती है बहू की हथेली | + | गिरती है बहू की हथेली पर। |
</poem> | </poem> |
16:30, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
'मेरा प्यारा-सा बच्चा'
गोद में भर लेती है बच्चे को
चेहरे पर नज़र न लगे
माथे पर काजल का टीका लगाती है
कोई बुरी आत्मा न छू सके
बाँहों में ताबीज़ बाँध देती है।
बच्चा स्कूल जाने लगा है
सुबह से ही माँ जुट जाती है
चौका-बर्तन में
कहीं बेटा भूखा न चला जाए।
लड़कर आता है पड़ोसियों के बच्चों से
माँ के आँचल में छुप जाता है
अब उसे कुछ नहीं हो सकता।
बच्चा बड़ा होता जाता है
माँ मन्नतें माँगती है
देवी-देवताओं से
बेटे के सुनहरे भविष्य की खातिर
बेटा कामयाबी पाता है
माँ भर लेती है उसे बाँहों में
अब बेटा नजरों से दूर हो जाएगा।
फिर एक दिन आता है
शहनाईयाँ गूँज उठती हैं
माँ के क़दम आज जमीं पर नहीं
कभी इधर दौड़ती है, कभी उधर
बहू के क़दमों का इंतज़ार है उसे
आशीर्वाद देती है दोनों को
एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत के लिए।
माँ सिखाती है बहू को
परिवार की परम्पराएँ व संस्कार
बेटे का हाथ बहू के हाथों में रख
बोलती है
बहुत नाजों से पाला है इसे
अब तुम्हें ही देखना है।
माँ की ख़ुशी भरी आँखों से
आँसू की एक गरम बूँद
गिरती है बहू की हथेली पर।