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जब पाहन भे बनबाहन-से, उतरे बनरा, ‘जय राम’ रढै।
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‘तुलसी’ लिएँ सैल-सिला सब सोहत, सागरू ज्यों बल बारि बढैं।।
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करि कोपु करैं रघुबीर को आयसु, कौतुक ही गढ़ कूदि बढ़ै।
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चतुरंग चमू पलमें दलि कै रन रावन-राढ़-सुहाड़ गढै।6।
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बिपुल बिसाल बिकराल कपि-भालु, मानो
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कालु बहु बेष धरें, धाए किएँ करषा।
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लिए सिला-सैल, साल, ताल औ तमाल तोरि,
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तोपैं तोयनिधि, सुरको समाजु हरषा।।
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डरे दिगकुंजर कमठु कोलु कलमले,
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डोरे धराधर धारि, धराधरू धरषा।
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‘तुलसी’ तमकि चलै, राधौं की सपथ करैं,
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को करै अटक कपिकटक अमरषा।7।
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आए सुकु, सारनु, बोलाए ते कहन लागे,
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पुलक सरीर सेना करत फहम हीं।
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‘महाबली बानर बिसाल भालु काल-से,
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कराल हैं , रहैं कहाँ, समाहिंगे कहाँ महीं’।।
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हँस्यो दसकंधु रघुनाथको प्रताप सिनि,
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‘तुलसी’ दुरावे मुखु,  सूखत सहम हीं।
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रामके बिरोधें  बुरो बिधि-हरि -हरहू को,
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सबको भलो है राजा रामके रहम हीं।8।
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17:27, 1 मई 2011 के समय का अवतरण

 

( समुद्रोचरण )

(6)

जब पाहन भे बनबाहन-से, उतरे बनरा, ‘जय राम’ रढै।
 ‘तुलसी’ लिएँ सैल-सिला सब सोहत, सागरू ज्यों बल बारि बढैं।।

 करि कोपु करैं रघुबीर को आयसु, कौतुक ही गढ़ कूदि बढ़ै।
चतुरंग चमू पलमें दलि कै रन रावन-राढ़-सुहाड़ गढै।6।

 (7)

बिपुल बिसाल बिकराल कपि-भालु, मानो
कालु बहु बेष धरें, धाए किएँ करषा।
 
लिए सिला-सैल, साल, ताल औ तमाल तोरि,
तोपैं तोयनिधि, सुरको समाजु हरषा।।

डरे दिगकुंजर कमठु कोलु कलमले,
डोरे धराधर धारि, धराधरू धरषा।

‘तुलसी’ तमकि चलै, राधौं की सपथ करैं,
 को करै अटक कपिकटक अमरषा।7।

 (8)

आए सुकु, सारनु, बोलाए ते कहन लागे,
 पुलक सरीर सेना करत फहम हीं।

‘महाबली बानर बिसाल भालु काल-से,
कराल हैं , रहैं कहाँ, समाहिंगे कहाँ महीं’।।

 हँस्यो दसकंधु रघुनाथको प्रताप सिनि,
 ‘तुलसी’ दुरावे मुखु, सूखत सहम हीं।

रामके बिरोधें बुरो बिधि-हरि -हरहू को,
सबको भलो है राजा रामके रहम हीं।8।