Last modified on 8 मई 2011, at 16:03

"नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 9" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=न…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
   
 
   
 
(81)
 
(81)
 
(83)
 
  
 +
दिन -दिन दूनो देखि दारिदु , दुकालु ,
 +
दुखु दुरितु दुराजु सुख-सुकृत सकोच है।
  
 +
मागें पैंत पावत पचारि पातकी प्रचंड,
 +
कालकी करालता, भलेको होत पोच है।
 +
 +
आपने ं तौ एकु अवलंबु अंब डिंभ ज्यों,
 +
समर्थ सीतानाथ सब संकट बिमोच है।
 +
 +
तुलसी की साहसी सराहिए कृपाल राम!
 +
नामकें भरोसें परिनामको निसोच है।।
 +
 +
(82)
 +
 +
मोह -मद मात्यो, रात्यो कुमति-कुनारिसों,
 +
बिसारि बेद-लोक -लाज ,आँकरो अचेतु है।
 +
 +
भावे सो करत, मुँह आवै सो कहत ,कछु,
 +
काहूकी सहत  नाहिं , सरकस हेतु है।
 +
 +
तुलसी अधिक अधमाई हू अजामिलतें,
 +
ताहूमें सहाय कलि कपटनिकेतु  है।
 +
 +
जैबेको अनेक टेक , एक टेक ह्वौबेकी,
 +
जो, पेट-प्रियपूत हित रामनामु लेतु है।।
  
 
</poem>
 
</poem>

16:03, 8 मई 2011 के समय का अवतरण


नामविश्वास-9
 
(81)

दिन -दिन दूनो देखि दारिदु , दुकालु ,
 दुखु दुरितु दुराजु सुख-सुकृत सकोच है।

मागें पैंत पावत पचारि पातकी प्रचंड,
कालकी करालता, भलेको होत पोच है।

आपने ं तौ एकु अवलंबु अंब डिंभ ज्यों,
समर्थ सीतानाथ सब संकट बिमोच है।

तुलसी की साहसी सराहिए कृपाल राम!
नामकें भरोसें परिनामको निसोच है।।

(82)

मोह -मद मात्यो, रात्यो कुमति-कुनारिसों,
 बिसारि बेद-लोक -लाज ,आँकरो अचेतु है।

 भावे सो करत, मुँह आवै सो कहत ,कछु,
 काहूकी सहत नाहिं , सरकस हेतु है।

 तुलसी अधिक अधमाई हू अजामिलतें,
ताहूमें सहाय कलि कपटनिकेतु है।

जैबेको अनेक टेक , एक टेक ह्वौबेकी,
जो, पेट-प्रियपूत हित रामनामु लेतु है।।