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"पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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चाह नहीं मैं सुरबाला के
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चाह नहीं, मैं सुरबाला के  
 
गहनों में गूँथा जाऊँ,
 
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में
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चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
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प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
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चाह नहीं सम्राटों के शव पर
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
+
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
+
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
+
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
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मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
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उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
+
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।
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जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
 
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16:28, 20 मई 2020 के समय का अवतरण

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चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!