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भले ही बाग़ में कोयल भी है, बहार भी है / गुलाब खंडेलवाल
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20:55, 6 जुलाई 2011
नज़र की ओट में हर फूल बेक़रार भी है
खिले हैं फूल उमंगों के चारों
और
ओर
जहाँ
कहीं पे बीच में यादों का एक मज़ार भी है
दिए तो रूप की पलकों में सज रहे हैं मगर
किसी के
किसीके
पाँव की आहट का इंतज़ार भी है
हमें मिटा तो रहे हो, मगर रहे यह याद
Vibhajhalani
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