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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : सपने में ('''रचनाकार:''' [[रणजीत]])</div>
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</td>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ
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जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है
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तो मेरा पीछा छोड़ो
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क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो
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आना हो तो आओ पूरी तरह से
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<div style="text-align: center;">
नहीं तो वहीं रहो मजे में
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
यह क्या बात हुई
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कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो
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कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे
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और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ
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और फिर यह तो भई हद है
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जानबूझ कर दुःखी करने की बात है
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कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
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स्मृतियों और संभावनाओं के बियाबानों में
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और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
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बिना कुछ कहे सुने
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पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
उनकी हिम्मत नहीं है । 
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अपरिचित पास आओ
</pre></center></div>
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया