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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : अदावत दिल में रखते हैं ('''रचनाकार:''' [[वीरेन्द्र खरे 'अकेला' ]])</div>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं
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न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते हैं
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यक़ीनन उनका जी भरने लगा है मेज़बानी से
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<div style="text-align: center;">
वो कुछ दिन से हमें जाती हुई लारी दिखाते हैं
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त से
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
उन्हें क्या, वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
मदद करने से पहले तुम हक़ीक़त भी परख लेना
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
यहाँ पर आदतन कुछ लोग लाचारी दिखाते हैं
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
डराना चाहते हैं वो हमें भी धमकियाँ देकर
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सबमें अपनेपन की माया
बड़े नादान हैं पानी को चिन्गारी दिखाते हैं
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अपने पन में जीवन आया
 
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दरख़्तों की हिफ़ाज़त करने वालो डर नहीं जाना
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दिखाने दो, अगर कुछ सरफिरे आरी दिखाते हैं
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हिमाक़त क़ाबिले-तारीफ़ है उनकी ‘अकेला’जी
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हमीं से काम है हमको ही रंगदारी दिखाते हैं
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया