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तुम्हारा जिस्म / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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17:53, 17 सितम्बर 2011
घेरती है कभी बाहें डालियां बन कर
कहीं होंठ खिल उठते हैं गुलों की तरह
नमाज़
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रहा है कोई पर्वत सीने पर
कितनी गहरी है ज़रा देखो कमर की वादी
हरा-हरा-सा लगता है आज हर मंज़र
Tripurari Kumar Sharma
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