भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मंहगे होते रिश्ते / राजेन्द्र जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>मैं राजनीति म…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
 
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=
+
|संग्रह=सब के साथ मिल जाएगा / राजेन्द्र जोशी
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}<poem>मैं राजनीति में रहना चाहता हूँ
 
{{KKCatKavita‎}}<poem>मैं राजनीति में रहना चाहता हूँ
मैं नेता हॅू स्वंयभू  
+
मैं नेता हूँ स्वंयभू  
 
नहीं चाहता चुनाव लड़ना  
 
नहीं चाहता चुनाव लड़ना  
 
चाहता हूँ पदाधिकारी बनना  
 
चाहता हूँ पदाधिकारी बनना  

04:01, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

मैं राजनीति में रहना चाहता हूँ
मैं नेता हूँ स्वंयभू
नहीं चाहता चुनाव लड़ना
चाहता हूँ पदाधिकारी बनना
मैं हमेशा रहना चाहता हूँ
एम. एल. ए. और एम. पी. भी नहीं
चाहता हूँ सीधा प्रधानमंत्री बनना
मैं राजनीति में रहना चाहता हूँ
चाहता हूँ मेरी नीति को लागू करना
भारत और कैसे आयेगा ?
 देशों के बराबर लाना
भारत को चाहिए
नीति स्वदेशीय
भूख से मुक्ति
चरखे से कमाई
भय से
अहिंसा से
आंतक से छुटकारा
लोकतत्रं से
एक ही है रास्ता साफ सुथरा
स्पष्ट नीति और नीयत साफ
रखनी होगी
लोकतंत्र में चुनाव लड़ना होगा
जन - जन के मन में रमना होगा !
मै राजनीति में रहना चाहता हूँ
चाहता हूँ
रिश्तों की जड़ता को तोड़ना
मंहगाई को रोकना
मजबूरी से लड़ना
बेकारी को मिटाना
राज करना हमारी नीति में होगा
गाँधी को सिर्फ याद करना होगा
सशपथ लोकतंत्र को बचाना होगा
लोकतंत्र को बचाना होगा !