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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : ख़ूबसूरत दिन ('''रचनाकार:''' [[स्वप्निल श्रीवास्तव]])</div>
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उसने खोल दी खिड़कियाँ
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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ढेर-सी ताज़ा हवाएँ दौड़ कर आ गईं घर में
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
ढेर-सी धूप आ गई
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
और घर के कोने-अतरे में बिखरने लगी
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सबमें अपनेपन की माया
 
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अपने पन में जीवन आया
 
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टंगे हुए कलैंडर में
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उसने घेर दी आज की तारीख़
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तस्वीरों पर लगी धूल को साफ़ किया
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रैक पर सजा कर रख दीं क़िताबें
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खिड़की के बाहर
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हिलती हुई टहनी को देखा और कहा
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'तुम भी आओ मेरे घर में'
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टहनी पर बैठी हुई बुलबुल
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उल्लास में फ़ुदकती रही
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पहली बार वह अपने घर में देख रहा था
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इतना ख़ूबसूरत दिन ।
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया