"ताँका-17-32 / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
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छनती रही | छनती रही | ||
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चाँद और तारे भी | चाँद और तारे भी | ||
गाते दिखे रागिनी | गाते दिखे रागिनी | ||
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पीर की गली | पीर की गली | ||
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पड़े फलक,पर | पड़े फलक,पर | ||
मीलों फिर भी चली | मीलों फिर भी चली | ||
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खत्म न हुआ | खत्म न हुआ | ||
यातना का सफ़र | यातना का सफ़र | ||
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बरसने लगा था | बरसने लगा था | ||
ओलों का भी कहर | ओलों का भी कहर | ||
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20. | 20. | ||
पीर की गली | पीर की गली | ||
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रिसता मन लिये | रिसता मन लिये | ||
क्या होगी कभी भोर ! | क्या होगी कभी भोर ! | ||
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21. | 21. | ||
मछली जैसे | मछली जैसे | ||
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बींधते हुए तुम | बींधते हुए तुम | ||
व्यंग्य बाणों से मन | व्यंग्य बाणों से मन | ||
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22. | 22. | ||
नहाती रही | नहाती रही | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 47: | ||
कि क्यूँ रूठ बैठा था | कि क्यूँ रूठ बैठा था | ||
वो बेदर्द प्रभात | वो बेदर्द प्रभात | ||
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23. | 23. | ||
कैदी सुबह | कैदी सुबह | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 54: | ||
अँधेरे को धकेल | अँधेरे को धकेल | ||
भागती चली आई | भागती चली आई | ||
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24. | 24. | ||
नोंचे किसने | नोंचे किसने | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 61: | ||
वो मधुर कोकिला | वो मधुर कोकिला | ||
सुख-दुख कहने | सुख-दुख कहने | ||
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25. | 25. | ||
आसमान से | आसमान से | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 68: | ||
बाग और बगीचे | बाग और बगीचे | ||
जंगल में हिरना | जंगल में हिरना | ||
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26. | 26. | ||
वे देते गए | वे देते गए | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 75: | ||
मूक सहती गई | मूक सहती गई | ||
मैं खुद को खोकर | मैं खुद को खोकर | ||
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27. | 27. | ||
मिलती रही | मिलती रही | ||
पंक्ति 72: | पंक्ति 82: | ||
गम का खारा जल | गम का खारा जल | ||
घूँट-घूँट पीकर | घूँट-घूँट पीकर | ||
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28. | 28. | ||
दुष्ट हवा ने | दुष्ट हवा ने | ||
पंक्ति 78: | पंक्ति 89: | ||
बिना खता के पंछी | बिना खता के पंछी | ||
क्यूँ हैं इसने रौंदे ? | क्यूँ हैं इसने रौंदे ? | ||
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29. | 29. | ||
नीम का पेड़ | नीम का पेड़ | ||
पंक्ति 84: | पंक्ति 96: | ||
निबौंलियाँ,जी भर | निबौंलियाँ,जी भर | ||
उसे, गुदगुदाएँ | उसे, गुदगुदाएँ | ||
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30. | 30. | ||
अप्सरा बनी | अप्सरा बनी | ||
पंक्ति 90: | पंक्ति 103: | ||
रेशम की ओढ़नी | रेशम की ओढ़नी | ||
पहन इतराईं | पहन इतराईं | ||
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31. | 31. | ||
गुमसुम है | गुमसुम है | ||
पंक्ति 96: | पंक्ति 110: | ||
सदमें में शायद | सदमें में शायद | ||
है भूली पहचान | है भूली पहचान | ||
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32. | 32. | ||
देख रही थी | देख रही थी | ||
पंक्ति 102: | पंक्ति 117: | ||
जाल के चारों ओर | जाल के चारों ओर | ||
बेरहम शिकारी | बेरहम शिकारी | ||
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09:34, 10 मई 2012 के समय का अवतरण
17.
छनती रही
रात भर चाँदनी
झूम-झूम के
चाँद और तारे भी
गाते दिखे रागिनी
18.
पीर की गली
नंगे पाँव लिये ही
तपती रेत
पड़े फलक,पर
मीलों फिर भी चली
19.
खत्म न हुआ
यातना का सफ़र
टूटी थी नाव
बरसने लगा था
ओलों का भी कहर
20.
पीर की गली
मिला, ओर न छोर
कहाँ मैं जाऊँ
रिसता मन लिये
क्या होगी कभी भोर !
21.
मछली जैसे
तड़पी आजीवन
नहीं हिचके
बींधते हुए तुम
व्यंग्य बाणों से मन
22.
नहाती रही
अँधेरे में वो रात,
समझी नहीं
कि क्यूँ रूठ बैठा था
वो बेदर्द प्रभात
23.
कैदी सुबह
बड़ी छटपटाई
मुश्किल से ही
अँधेरे को धकेल
भागती चली आई
24.
नोंचे किसने
पेड़ों से ये गहने,
कैसे आएगी
वो मधुर कोकिला
सुख-दुख कहने
25.
आसमान से
टूट पड़ा झरना
नहाने लगे
बाग और बगीचे
जंगल में हिरना
26.
वे देते गए
हर पग ठोकर
पगडंडी -सी
मूक सहती गई
मैं खुद को खोकर
27.
मिलती रही
पग-पग ठोकर
जिंदा भी रही
गम का खारा जल
घूँट-घूँट पीकर
28.
दुष्ट हवा ने
उजाड़ डाले फिर
बसे घरौंदे
बिना खता के पंछी
क्यूँ हैं इसने रौंदे ?
29.
नीम का पेड़
बहुत शरमाए
नटखट -सी
निबौंलियाँ,जी भर
उसे, गुदगुदाएँ
30.
अप्सरा बनी
दूर देश से आईं
ये तितलियाँ
रेशम की ओढ़नी
पहन इतराईं
31.
गुमसुम है
गा न पाए कोयल
मीठी -सी तान
सदमें में शायद
है भूली पहचान
32.
देख रही थी
सहमी हुई मृगी
मूक -सी बनी
जाल के चारों ओर
बेरहम शिकारी