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− | + | उपनाम [[ हितैषी ]] हिन्दी, फ़ारसी, संस्कृत, बँगला और गुजराती भाषाओं के विद्वान | |
− | उपनाम [[ हितैषी ]] | + | ==जन्म== |
− | + | स्थान ग्राम गंज मुरादाबाद, उन्नाव,[[उत्तर प्रदेश]] हितैषी का जन्म 12 नवंबर 1885 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद स्थित कस्बा गंज मुरादाबाद में पं रामचंद्र मिश्र के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। | |
− | जन्म स्थान ग्राम गंज मुरादाबाद, उन्नाव,[[उत्तर प्रदेश]] | + | |
− | प्रमुख कृतियाँ मातृगीता, कल्लोलिनी, वैकाली, दर्शना | + | ==प्रमुख कृतियाँ== |
+ | मातृगीता, कल्लोलिनी, वैकाली, दर्शना | ||
+ | मातृगीता कल्लोलिनी वैंकाली और दर्शना उनकी प्रकाशित काव्य कृतियां हैं। मधु मंदिर नामक उमर खय्याम की रूबाइयों का सरस काव्यनुवाद अब तक अप्राप्त है। | ||
+ | ==लोकप्रिय रचना== | ||
+ | 1916 में प्रकाशित अमेरिका को स्वतंत्रता कैसे मिली पुस्तिका के अंतिम कवर पृष्ठ पर हितैषी की लोकप्रिय रचना शहीदों की चिताओं पर ..... प्रकाशित हुयी थीं। पुस्तिका के छपते ही प्रतिबंधित हो जाने के कारण ये पंक्तियां देश के क्रांतिकारियों के मध्य चोरी से बंटवायी गयी। | ||
+ | ==स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा== | ||
+ | आचार्य [[गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' ]] जो त्रिशूल उपनाम से कवितायें लिखा करेते थे हितैषी के काब्य गुरू थे। उन्होंने 1913 से 1936 तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ चढ कर हिस्सा लिया । कानपुर के टाउन हाल में झंडा आन्दोलन के दौरान उनके द्वारा झंडा फहराया गया । | ||
+ | ==सवैयों का बादशाह== | ||
+ | [[श्रीनारायण चतुर्वेदी]] उन्हें सवैयों का बादशाह कहते थे। |
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(1895 - 1957 )
उपनाम हितैषी हिन्दी, फ़ारसी, संस्कृत, बँगला और गुजराती भाषाओं के विद्वान
विषय सूची
जन्म
स्थान ग्राम गंज मुरादाबाद, उन्नाव,उत्तर प्रदेश हितैषी का जन्म 12 नवंबर 1885 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद स्थित कस्बा गंज मुरादाबाद में पं रामचंद्र मिश्र के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था।
प्रमुख कृतियाँ
मातृगीता, कल्लोलिनी, वैकाली, दर्शना मातृगीता कल्लोलिनी वैंकाली और दर्शना उनकी प्रकाशित काव्य कृतियां हैं। मधु मंदिर नामक उमर खय्याम की रूबाइयों का सरस काव्यनुवाद अब तक अप्राप्त है।
लोकप्रिय रचना
1916 में प्रकाशित अमेरिका को स्वतंत्रता कैसे मिली पुस्तिका के अंतिम कवर पृष्ठ पर हितैषी की लोकप्रिय रचना शहीदों की चिताओं पर ..... प्रकाशित हुयी थीं। पुस्तिका के छपते ही प्रतिबंधित हो जाने के कारण ये पंक्तियां देश के क्रांतिकारियों के मध्य चोरी से बंटवायी गयी।
स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा
आचार्य गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' जो त्रिशूल उपनाम से कवितायें लिखा करेते थे हितैषी के काब्य गुरू थे। उन्होंने 1913 से 1936 तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ चढ कर हिस्सा लिया । कानपुर के टाउन हाल में झंडा आन्दोलन के दौरान उनके द्वारा झंडा फहराया गया ।
सवैयों का बादशाह
श्रीनारायण चतुर्वेदी उन्हें सवैयों का बादशाह कहते थे।