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अच्छा् काटना चाहो | अच्छा् काटना चाहो | ||
तो बन्धु, अच्छा ही बोना होगा | तो बन्धु, अच्छा ही बोना होगा | ||
− | + | अन्यथा मित्र! जिंदगी भर | |
अपने किए पर रोना होगा। | अपने किए पर रोना होगा। | ||
गल चुके हैं पाये बुजुर्गों से विरासत में मिली सीढ़ी के | गल चुके हैं पाये बुजुर्गों से विरासत में मिली सीढ़ी के | ||
− | अब हमें ही संभालने हैं आखिर | + | अब हमें ही संभालने हैं आखिर विश्वास अपनी पीढ़ी के |
वक्त से लड़ना है दोस्त् | वक्त से लड़ना है दोस्त् | ||
− | + | पत्थरों पर भी सोना होगा। | |
कुछ इस पार, कुछ उस पार और कुछ बीच में खड़ी हैं दीवार | कुछ इस पार, कुछ उस पार और कुछ बीच में खड़ी हैं दीवार | ||
एक कागज की नाव नदी में, हजार यात्रियों के इश्त हार | एक कागज की नाव नदी में, हजार यात्रियों के इश्त हार | ||
दूसरे जा सकें पार | दूसरे जा सकें पार | ||
− | इसलिए पुल | + | इसलिए पुल तुम्हें होना होगा। |
− | जिंदगी | + | जिंदगी व्यव्साय नहीं है जो लुटाते हो अनुबंधों पर |
तुम तब तक ही जीवित हो बंधु, हो जब तक अपने कंधों पर | तुम तब तक ही जीवित हो बंधु, हो जब तक अपने कंधों पर | ||
जैसे भी हो संभव | जैसे भी हो संभव | ||
बोझ अपना स्वंयं ही ढोना होगा। | बोझ अपना स्वंयं ही ढोना होगा। | ||
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18:35, 19 मई 2012 के समय का अवतरण
अच्छा् काटना चाहो
तो बन्धु, अच्छा ही बोना होगा
अन्यथा मित्र! जिंदगी भर
अपने किए पर रोना होगा।
गल चुके हैं पाये बुजुर्गों से विरासत में मिली सीढ़ी के
अब हमें ही संभालने हैं आखिर विश्वास अपनी पीढ़ी के
वक्त से लड़ना है दोस्त्
पत्थरों पर भी सोना होगा।
कुछ इस पार, कुछ उस पार और कुछ बीच में खड़ी हैं दीवार
एक कागज की नाव नदी में, हजार यात्रियों के इश्त हार
दूसरे जा सकें पार
इसलिए पुल तुम्हें होना होगा।
जिंदगी व्यव्साय नहीं है जो लुटाते हो अनुबंधों पर
तुम तब तक ही जीवित हो बंधु, हो जब तक अपने कंधों पर
जैसे भी हो संभव
बोझ अपना स्वंयं ही ढोना होगा।