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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक :इक-इक पत्थर जोड़ के मैंने जो दीवार बनाई.. '''रचनाकार:''' [[क़तील शिफ़ाई]] </div>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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(11 जुलाई को क़तील शिफ़ाई की पुण्यतिथि होती है )
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इक-इक पत्थर जोड़ के मैंने जो दीवार बनाई है
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झाँकूँ उसके पीछे तो रुस्वाई ही रुस्वाई है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूँ मैं
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
आँखें मेरी अपनी हैं पर उनमें नींद पराई है
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
देख रहे हैं सब हैरत से नीले-नीले पानी को
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
पूछे कौन समन्दर से तुझमें कितनी गहराई है
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
सब कहते हैं इक जन्नत उतरी है मेरी धरती पर
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सबमें अपनेपन की माया
मैं दिल में सोचूँ शायद कमज़ोर मेरी बीनाई है
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अपने पन में जीवन आया
 
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बाहर सहन में पेड़ों पर कुछ जलते-बुझते जुगनू थे
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</div></div>
हैरत है फिर घर के अन्दर किसने आग लगाई है
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आज हुआ मालूम मुझे इस शहर के चन्द सयानों से
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अपनी राह बदलते रहना सबसे बड़ी दानाई है
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तोड़ गये पैमाना-ए-वफ़ा इस दौर में कैसे कैसे लोग
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ये मत सोच "क़तील" कि बस इक यार तेरा हरजाई है
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया