भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सेनापति / परिचय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
जन्म -  संवत १६४६
 
जन्म -  संवत १६४६
  
अन्य प्राचीन कवियों की भाँति सेनापति के संबंध में भी बहुत कम जानकारी प्राप्त है। इतना ही ज्ञात है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे तथा इनके पिता का नाम गंगाधर था। इनके एक पद 'गंगा तीर वसति अनूप जिन पाई है के अनुसार ये बुलंदशहर जिले के अनूप शहर के माने जाते हैं। सेनापति के दो मुख्य ग्रंथ हैं- 'काव्य-कल्पद्रुम तथा 'कवित्त-रत्नाकर। इनके काव्य में भक्ति और शृंगार दोनों का मिश्रण है। इनका षट-ॠतु-वर्णन अत्यंत सुंदर बन पडा है, जिसकी उपमाएँ अनूठी हैं।
+
अन्य प्राचीन कवियों की भाँति सेनापति के संबंध में भी बहुत कम जानकारी प्राप्त है। इतना ही ज्ञात है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे तथा इनके पिता का नाम गंगाधर था,पितामह का परशुराम और गुरु का नाम हिरामणि दीक्षित था. इनके एक पद 'गंगा तीर वसति अनूप जिन पाई है के अनुसार ये बुलंदशहर जिले के अनूप शहर के माने जाते हैं। सेनापति के दो मुख्य ग्रंथ हैं- 'काव्य-कल्पद्रुम तथा 'कवित्त-रत्नाकर। इनके काव्य में भक्ति और शृंगार दोनों का मिश्रण है। इनका षट-ॠतु-वर्णन अत्यंत सुंदर बन पडा है, जिसकी उपमाएँ अनूठी हैं।
  
इनका जन्म संवत १६४६ के लगभग अनूप शहर में कान्यकुब्ज ब्राह्मण के यहाँ हुआ था . ये राज दरबार के संपर्क में अवश्य रहे मालूम पड़ते हैं, किन्तु जीवन का उत्तर-काल सन्यास में व्यतीत किया. ऐसा प्रतीत होता है इनको राज-दरबार से घृणा हों गई थी —      ‘चारि वरदान तजी पाँय कमलेच्छन के, पायक मलेच्छ्न के कहे को कहाईये’          
+
इनका जन्म संवत १६४६ के लगभग अनूप शहर में कान्यकुब्ज ब्राह्मण के यहाँ हुआ था . ये राज दरबार के संपर्क में अवश्य रहे मालूम पड़ते हैं, किन्तु जीवन का उत्तर-काल सन्यास में व्यतीत किया. ऐसा प्रतीत होता है इनको राज-दरबार से घृणा हों गई थी —‘चारि वरदान तजी पाँय कमलेच्छन के, पायक मलेच्छ्न के कहे को कहाईये’     
     भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था . इन्होंने अपनी रचनाओं में अनुप्रास और श्लेष का बड़ा चमत्कार दिखाया है . मुक्तक काव्यकारों में सेनापति का स्थान बहुत ऊँचा है .इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है . जिसमें तत्सम शब्दों को ओर झुकाव अधिक है  .इनका ऋतुवर्णन बहुत प्रसिद्ध है .ऐसा ऋतु-वर्णन हिंदी – साहित्य में बहुत कम मिलता है .
+
     
 +
भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था . इन्होंने अपनी रचनाओं में अनुप्रास और श्लेष का बड़ा चमत्कार दिखाया है . मुक्तक काव्यकारों में सेनापति का स्थान बहुत ऊँचा है .इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है . जिसमें तत्सम शब्दों को ओर झुकाव अधिक है  .इनका ऋतुवर्णन बहुत प्रसिद्ध है .ऐसा ऋतु-वर्णन हिंदी – साहित्य में बहुत कम मिलता है .

14:07, 31 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

जन्म - संवत १६४६

अन्य प्राचीन कवियों की भाँति सेनापति के संबंध में भी बहुत कम जानकारी प्राप्त है। इतना ही ज्ञात है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे तथा इनके पिता का नाम गंगाधर था,पितामह का परशुराम और गुरु का नाम हिरामणि दीक्षित था. इनके एक पद 'गंगा तीर वसति अनूप जिन पाई है के अनुसार ये बुलंदशहर जिले के अनूप शहर के माने जाते हैं। सेनापति के दो मुख्य ग्रंथ हैं- 'काव्य-कल्पद्रुम तथा 'कवित्त-रत्नाकर। इनके काव्य में भक्ति और शृंगार दोनों का मिश्रण है। इनका षट-ॠतु-वर्णन अत्यंत सुंदर बन पडा है, जिसकी उपमाएँ अनूठी हैं।

इनका जन्म संवत १६४६ के लगभग अनूप शहर में कान्यकुब्ज ब्राह्मण के यहाँ हुआ था . ये राज दरबार के संपर्क में अवश्य रहे मालूम पड़ते हैं, किन्तु जीवन का उत्तर-काल सन्यास में व्यतीत किया. ऐसा प्रतीत होता है इनको राज-दरबार से घृणा हों गई थी —‘चारि वरदान तजी पाँय कमलेच्छन के, पायक मलेच्छ्न के कहे को कहाईये’

भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था . इन्होंने अपनी रचनाओं में अनुप्रास और श्लेष का बड़ा चमत्कार दिखाया है . मुक्तक काव्यकारों में सेनापति का स्थान बहुत ऊँचा है .इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है . जिसमें तत्सम शब्दों को ओर झुकाव अधिक है .इनका ऋतुवर्णन बहुत प्रसिद्ध है .ऐसा ऋतु-वर्णन हिंदी – साहित्य में बहुत कम मिलता है .