"आयामों के इन्द्रधनुष / रामस्वरूप परेश" के अवतरणों में अंतर
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[१] | [१] | ||
− | मेरे माथे का हिम किरीट, ऊंचा नगराज हिमालय है | + | मेरे माथे का हिम किरीट, ऊंचा नगराज हिमालय है |
− | हर प्रीत भरे उर का परिचय बस ताजमहल ही में लय है | + | हर प्रीत भरे उर का परिचय बस ताजमहल ही में लय है |
मेरी भृकुटि में महा प्रलय मेरी मुस्कानों में अमृत | मेरी भृकुटि में महा प्रलय मेरी मुस्कानों में अमृत | ||
− | मैं तो इस भारत की मांटी मेरा इतना सा परिचय है | + | मैं तो इस भारत की मांटी मेरा इतना सा परिचय है |
[२] | [२] | ||
− | जब-जब स्वतन्त्रता के पट में कोई अंगार सजाता है | + | जब-जब स्वतन्त्रता के पट में कोई अंगार सजाता है |
− | शान्ति सुहागिन के कोई शोणित से हाथ रचाता है | + | शान्ति सुहागिन के कोई शोणित से हाथ रचाता है |
भिन्न- भिन्न हैं जाति धर्म पर जब स्वदेश पर संकट हो | भिन्न- भिन्न हैं जाति धर्म पर जब स्वदेश पर संकट हो | ||
− | मन्दिर बढ़कर मस्जिद के माथे पर तिलक लगाता है | + | मन्दिर बढ़कर मस्जिद के माथे पर तिलक लगाता है |
[३] | [३] | ||
− | ऐसा गीत उचार की जिससे कुछ अँधियारा कम हो जाये | + | ऐसा गीत उचार की जिससे कुछ अँधियारा कम हो जाये |
− | ईश्वर की पाषाणी मूरत की भी आंखे नम हो जायें | + | ईश्वर की पाषाणी मूरत की भी आंखे नम हो जायें |
द्वार-द्वार पर दीप जलाकर जग का तिमिर भगाने वाले | द्वार-द्वार पर दीप जलाकर जग का तिमिर भगाने वाले | ||
− | बनकर स्वयं दीप जल जिससे हर मावस पूनम हो जाये | + | बनकर स्वयं दीप जल जिससे हर मावस पूनम हो जाये |
− | + | [४] | |
− | मनुज मनुज को नहीं मानता है | + | मनुज मनुज को नहीं मानता है |
− | ईमान क्या वह नहीं जानता है | + | ईमान क्या वह नहीं जानता है |
किसी की विवशता पे हंस दो भले | किसी की विवशता पे हंस दो भले | ||
− | गुजरती है जिस पर वही जानता है | + | गुजरती है जिस पर वही जानता है |
− | + | [५] | |
− | मृदु जुन्हाई रजत शर से प्राण-बाला तिलमिलाई | + | मृदु जुन्हाई रजत शर से प्राण-बाला तिलमिलाई |
− | हर विवश मुस्कान पर शत वेदनाएं खिलखिलाई | + | हर विवश मुस्कान पर शत वेदनाएं खिलखिलाई |
नयन निर्झर में घुली हैं स्वप्न की छवियाँ मनोहर | नयन निर्झर में घुली हैं स्वप्न की छवियाँ मनोहर | ||
− | ह्रदय-दर्पण में कभी जब सुधि तुम्हारी झिलमिलाई | + | ह्रदय-दर्पण में कभी जब सुधि तुम्हारी झिलमिलाई |
− | + | [६] | |
− | कारवां की धूल पर हम शीश धुनते रह गए | + | कारवां की धूल पर हम शीश धुनते रह गए |
− | हम तो अपनों की कमी का जाल बुनते रह गये | + | हम तो अपनों की कमी का जाल बुनते रह गये |
आदमी के जनाजे में भी न हो सके शरीक | आदमी के जनाजे में भी न हो सके शरीक | ||
− | अफ़सोस कि पत्थर के लिए फूल चुनते रह गये | + | अफ़सोस कि पत्थर के लिए फूल चुनते रह गये |
− | + | [७] | |
− | जमाने से मिले अभिशाप कब वरदान बन जायेँ | + | जमाने से मिले अभिशाप कब वरदान बन जायेँ |
− | न जाने कौन-सी पीड़ा मधुर मुस्कान बन जायेँ | + | न जाने कौन-सी पीड़ा मधुर मुस्कान बन जायेँ |
अत: मैं हर गली की धूल को मस्तक नवाता हूँ | अत: मैं हर गली की धूल को मस्तक नवाता हूँ | ||
− | न जाने कौन-सा रज-कण मेरा भगवान बन जायेँ | + | न जाने कौन-सा रज-कण मेरा भगवान बन जायेँ |
− | + | [८] | |
− | दर्द जागा तो गीतों से सुलाया न गया | + | दर्द जागा तो गीतों से सुलाया न गया |
− | चाँद धरती पे इशारों से बुलाया न गया | + | चाँद धरती पे इशारों से बुलाया न गया |
लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की | लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की | ||
− | जब कोई याद मुझे आया तो भुलाया न गया | + | जब कोई याद मुझे आया तो भुलाया न गया |
+ | [९] | ||
+ | इन्तजार का का मृदु क्षण मुझको पखवारे सा लगता है | ||
+ | हर दरवाजा मुझको तेरे दरवाजे-सा लगता है | ||
+ | सच कहता हूँ खाकर मैं सौगंध तुम्हारे अधरों की | ||
+ | बिना तुम्हारे सांस स्वयं का अंगारे-सा लगता है | ||
+ | [१०] | ||
+ | अंगारों पर चला सदा मैं अंतर में मधुमास लिये | ||
+ | जूझा हूँ पग-पग झंझा से कूलों का विश्वास लिये | ||
+ | तुम्ही चढ़ावोगे आंसू का अर्ध्य हमारे गीतों पर | ||
+ | इस कारण हँसता आया हूँ मैं जगती का उपहास लिये | ||
+ | [११] | ||
+ | सांस वह जिसने समय को दी रवानी है | ||
+ | जो फिसलते को संभाले वह जवानी है | ||
+ | नींद क्यों आती नहीं बेचैन है मन | ||
+ | शायद किसी मनुज की आँख में पानी है | ||
+ | [१२] | ||
+ | हर आदमी को औरों के लिये जीना भी नहीं आता है | ||
+ | हर सपन को साध का जिल्द-सीना भी नहीं आता है | ||
+ | अफसोस मुकद्दर ने सुराही पे सुराही दी उन्हें | ||
+ | महफ़िल में जिनको तमीज से पीना भी नहीं आता है | ||
+ | [१३] | ||
+ | बदचलन ज़माने को ईमान से नफ़रत है | ||
+ | महल वालों को कुटी के गान से नफ़रत है | ||
+ | वह जन्नत भी जहन्नुम से बदतर है भाई | ||
+ | जहाँ इन्सान को इन्सान से नफ़रत है | ||
+ | [१४] | ||
+ | जिन्दगी क्या चीज है यह गम बताता है | ||
+ | हर सपन की मौत पर मातम मनाता है | ||
+ | बस गई मौत के गाँव में ही जिन्दगी तो | ||
+ | आज का इन्सान क्यों एटम बनाता है | ||
+ | [१५] | ||
+ | हिचकियाँ लेकर जहर पीता है क्यों | ||
+ | सांस की चादर को सीता है क्यों | ||
+ | मरता है यों कि मजबूर है लेकिन | ||
+ | अचरज है आदमी जीता है क्यों | ||
+ | [१६] | ||
+ | कौन कहता है कि है इंसां फ़रिश्ता | ||
+ | बस छलावा मात्र है हर नाता रिश्ता | ||
+ | अब बताओ आदमी का मूल्य क्या है | ||
+ | प्रस्तरों की भीड़ में इन्सान है सस्ता | ||
+ | [१७] | ||
+ | स्नेह जीवन एकता की दृढ़ कड़ी है | ||
+ | प्रगति का हर पथ परीक्षा की घडी है | ||
+ | राष्ट्र अर्चन में सभी सुख हैं समर्पित | ||
+ | देश की मिट्टी सितारों से बड़ी है | ||
+ | [१८] | ||
+ | कारवाएं उम्मीद गया अश्के गुबार बाकी हैं | ||
+ | दिल की दरगाह में ख्वाबों के मज़ार बाकी हैं | ||
+ | बहारों से कहो कि किसने बुलाया था तुम्हे | ||
+ | अभी तो महकते गम के सदाबहार बाकी हैं | ||
+ | [१९] | ||
+ | अंजली भर अश्रु हैं और इंच भर मुस्कान | ||
+ | दो कदम के पंथ में भी अनगनित व्यवधान | ||
+ | दाग दामन में है जिसके जिगर चाक-चाक | ||
+ | आज के इन्सान की है बस यही पहचान | ||
+ | [२०] | ||
+ | जी भर के बद् दुआ दे कोई मुझे असर नहीं | ||
+ | फूलों से जख्म पाये उसे काँटों का डर नहीं | ||
+ | सपनों के आशियाँ पर बिजली गिराने वाले | ||
+ | तुम्हारी आदमियत में भी कोई कसार नहीं | ||
+ | [२१] | ||
+ | हर तिनका पतवार नहीं होता है | ||
+ | हर कंधे पर भार नहीं होता है | ||
+ | नियति को क्यों कोस रहा है पगले | ||
+ | हर सपना साकार नहीं होता है | ||
+ | [२२] | ||
+ | चांदी के टुकड़ों में ईमान नहीं मिलता है | ||
+ | पाषाणों की कारा में भगवान नहीं मिलाता है | ||
+ | आज जगत में सब कुछ मिल जाता है लेकिन | ||
+ | सच तो यह है कि इंसान नहीं मिलाता है | ||
+ | [२३] | ||
+ | जीना है तुम्हे तो भगवान बनके जी | ||
+ | एक पल भी न कभी शैतान बनके जी | ||
+ | जिन्दगी आंसू की हो या आनन्द की लहर | ||
+ | तू आदमी है तो सदा इंसान बन के जी | ||
+ | [२४] | ||
+ | श्वांस जो थी वह तपन बन गई | ||
+ | जो रातें मिलन की सपन बन गई | ||
+ | विधै, लाज आयी न तुमको ज़रा | ||
+ | जो थी चूनरी वह कफ़न बन गई | ||
+ | |||
+ | [२५] | ||
+ | पतझर की कहानी को बहार क्या जाने | ||
+ | जीवन की रवानी को मजार क्या जाने | ||
+ | भार डोली का पूछो तो बता देंगे मगर बहारों के | ||
+ | दुल्हन की जवानी को कहार क्या जाने | ||
+ | [२६] | ||
+ | लहर के बिना क्या कोई तरण पा सका | ||
+ | क्या अँधेरे के बिना कोई किरण पा सका | ||
+ | कंटकों की राह पट तन का फटे बिन | ||
+ | फूल का पथ क्या कभी कोई चरण पा सका | ||
+ | [२७] | ||
+ | चाह बालक सी मचल जाती है | ||
+ | सांस चांदी है पिघल जाती है | ||
+ | बहारों के जुड़े न संवारो तो किसका कसूर | ||
+ | उम्र आंधी है निकल जाती है | ||
+ | [२८] | ||
+ | बेबसी का परिचय किनारे से पूछ | ||
+ | दूरियों की कहानी सितारों से पूछ | ||
+ | गीता ओ' क़ुरान में खोजना बेकार है दोस्त | ||
+ | जिन्दगी क्या है किसी गम के मरे से पूछ | ||
+ | [२९] | ||
+ | दीप क्या कहता कभी की जलने का मूड नहीं है | ||
+ | चाँद क्या कहता कभी की ढलने का मूड नहीं है | ||
+ | आदमी दे रहा धोखा मूड के नाम पर जिन्दगी को | ||
+ | पर कौन कहता मौत से की चलने का मूड नहीं है | ||
+ | [३०] | ||
+ | पूनम के घावों में तुमको पाकर आज दवाई रख दूँ | ||
+ | पलकों के पथ में गीतों की लाकर आज कमी रख दूँ | ||
+ | आने वाला शहर कहर हो केवल इस कारण से शायद | ||
+ | जी करता सूने होठों पर गाकर आज रुबाई लिख दूँ | ||
+ | |||
+ | [३१] | ||
+ | मैं तुम्हारे प्यार का उपहार लेकर क्या करूँगा | ||
+ | मैं तुम्हारी मांग का अधिकार लेकर क्या करूँगा | ||
+ | गाज से जो जल गई वीरान में वह डाल हूँ,अब | ||
+ | मैं तेरे मधुमास की मनुहार लेकर क्या करूंगा | ||
+ | [३२] | ||
+ | गुलशन में बहारों की रात ठहर जायेगी | ||
+ | पीर के सावन की बरसात ठहर जायेगी | ||
+ | प्यार के दुल्हे को जरा सजने तो दो | ||
+ | चलती हुई उम्र की बारात ठहर जायेगी | ||
+ | [३३] | ||
+ | कितने प्याले पी डाले कुछ लेखा है क्या | ||
+ | अमृत था या थी वह सुरा कुछ देखा है क्या | ||
+ | जल्दी इतनी करता है क्यों पीने में तू | ||
+ | पीने की सीमा पर भी कुछ रेखा है क्या | ||
+ | |||
+ | [३१] | ||
+ | मैं तुम्हारे प्यार का उपहार लेकर क्या करूँगा | ||
+ | मैं तुम्हारी मांग का अधिकार लेकर क्या करूँगा | ||
+ | गाज से जो जल गई वीरान में वह डाल हूँ,अब | ||
+ | मैं तेरे मधुमास की मनुहार लेकर क्या करूंगा | ||
+ | [३२] | ||
+ | गुलशन में बहारों की रात ठहर जायेगी | ||
+ | पीर के सावन की बरसात ठहर जायेगी | ||
+ | प्यार के दुल्हे को जरा सजने तो दो | ||
+ | चलती हुई उम्र की बारात ठहर जायेगी | ||
+ | [३३] | ||
+ | कितने प्याले पी डाले कुछ लेखा है क्या | ||
+ | अमृत था या थी वह सुरा कुछ देखा है क्या | ||
+ | जल्दी इतनी करता है क्यों पीने में तू | ||
+ | पीने की सीमा पर भी कुछ रेखा है क्या | ||
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13:34, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
[१]
मेरे माथे का हिम किरीट, ऊंचा नगराज हिमालय है
हर प्रीत भरे उर का परिचय बस ताजमहल ही में लय है
मेरी भृकुटि में महा प्रलय मेरी मुस्कानों में अमृत
मैं तो इस भारत की मांटी मेरा इतना सा परिचय है
[२]
जब-जब स्वतन्त्रता के पट में कोई अंगार सजाता है
शान्ति सुहागिन के कोई शोणित से हाथ रचाता है
भिन्न- भिन्न हैं जाति धर्म पर जब स्वदेश पर संकट हो
मन्दिर बढ़कर मस्जिद के माथे पर तिलक लगाता है
[३]
ऐसा गीत उचार की जिससे कुछ अँधियारा कम हो जाये
ईश्वर की पाषाणी मूरत की भी आंखे नम हो जायें
द्वार-द्वार पर दीप जलाकर जग का तिमिर भगाने वाले
बनकर स्वयं दीप जल जिससे हर मावस पूनम हो जाये
[४]
मनुज मनुज को नहीं मानता है
ईमान क्या वह नहीं जानता है
किसी की विवशता पे हंस दो भले
गुजरती है जिस पर वही जानता है
[५]
मृदु जुन्हाई रजत शर से प्राण-बाला तिलमिलाई
हर विवश मुस्कान पर शत वेदनाएं खिलखिलाई
नयन निर्झर में घुली हैं स्वप्न की छवियाँ मनोहर
ह्रदय-दर्पण में कभी जब सुधि तुम्हारी झिलमिलाई
[६]
कारवां की धूल पर हम शीश धुनते रह गए
हम तो अपनों की कमी का जाल बुनते रह गये
आदमी के जनाजे में भी न हो सके शरीक
अफ़सोस कि पत्थर के लिए फूल चुनते रह गये
[७]
जमाने से मिले अभिशाप कब वरदान बन जायेँ
न जाने कौन-सी पीड़ा मधुर मुस्कान बन जायेँ
अत: मैं हर गली की धूल को मस्तक नवाता हूँ
न जाने कौन-सा रज-कण मेरा भगवान बन जायेँ
[८]
दर्द जागा तो गीतों से सुलाया न गया
चाँद धरती पे इशारों से बुलाया न गया
लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की
जब कोई याद मुझे आया तो भुलाया न गया
[९]
इन्तजार का का मृदु क्षण मुझको पखवारे सा लगता है
हर दरवाजा मुझको तेरे दरवाजे-सा लगता है
सच कहता हूँ खाकर मैं सौगंध तुम्हारे अधरों की
बिना तुम्हारे सांस स्वयं का अंगारे-सा लगता है
[१०]
अंगारों पर चला सदा मैं अंतर में मधुमास लिये
जूझा हूँ पग-पग झंझा से कूलों का विश्वास लिये
तुम्ही चढ़ावोगे आंसू का अर्ध्य हमारे गीतों पर
इस कारण हँसता आया हूँ मैं जगती का उपहास लिये
[११]
सांस वह जिसने समय को दी रवानी है
जो फिसलते को संभाले वह जवानी है
नींद क्यों आती नहीं बेचैन है मन
शायद किसी मनुज की आँख में पानी है
[१२]
हर आदमी को औरों के लिये जीना भी नहीं आता है
हर सपन को साध का जिल्द-सीना भी नहीं आता है
अफसोस मुकद्दर ने सुराही पे सुराही दी उन्हें
महफ़िल में जिनको तमीज से पीना भी नहीं आता है
[१३]
बदचलन ज़माने को ईमान से नफ़रत है
महल वालों को कुटी के गान से नफ़रत है
वह जन्नत भी जहन्नुम से बदतर है भाई
जहाँ इन्सान को इन्सान से नफ़रत है
[१४]
जिन्दगी क्या चीज है यह गम बताता है
हर सपन की मौत पर मातम मनाता है
बस गई मौत के गाँव में ही जिन्दगी तो
आज का इन्सान क्यों एटम बनाता है
[१५]
हिचकियाँ लेकर जहर पीता है क्यों
सांस की चादर को सीता है क्यों
मरता है यों कि मजबूर है लेकिन
अचरज है आदमी जीता है क्यों
[१६]
कौन कहता है कि है इंसां फ़रिश्ता
बस छलावा मात्र है हर नाता रिश्ता
अब बताओ आदमी का मूल्य क्या है
प्रस्तरों की भीड़ में इन्सान है सस्ता
[१७]
स्नेह जीवन एकता की दृढ़ कड़ी है
प्रगति का हर पथ परीक्षा की घडी है
राष्ट्र अर्चन में सभी सुख हैं समर्पित
देश की मिट्टी सितारों से बड़ी है
[१८]
कारवाएं उम्मीद गया अश्के गुबार बाकी हैं
दिल की दरगाह में ख्वाबों के मज़ार बाकी हैं
बहारों से कहो कि किसने बुलाया था तुम्हे
अभी तो महकते गम के सदाबहार बाकी हैं
[१९]
अंजली भर अश्रु हैं और इंच भर मुस्कान
दो कदम के पंथ में भी अनगनित व्यवधान
दाग दामन में है जिसके जिगर चाक-चाक
आज के इन्सान की है बस यही पहचान
[२०]
जी भर के बद् दुआ दे कोई मुझे असर नहीं
फूलों से जख्म पाये उसे काँटों का डर नहीं
सपनों के आशियाँ पर बिजली गिराने वाले
तुम्हारी आदमियत में भी कोई कसार नहीं
[२१]
हर तिनका पतवार नहीं होता है
हर कंधे पर भार नहीं होता है
नियति को क्यों कोस रहा है पगले
हर सपना साकार नहीं होता है
[२२]
चांदी के टुकड़ों में ईमान नहीं मिलता है
पाषाणों की कारा में भगवान नहीं मिलाता है
आज जगत में सब कुछ मिल जाता है लेकिन
सच तो यह है कि इंसान नहीं मिलाता है
[२३]
जीना है तुम्हे तो भगवान बनके जी
एक पल भी न कभी शैतान बनके जी
जिन्दगी आंसू की हो या आनन्द की लहर
तू आदमी है तो सदा इंसान बन के जी
[२४]
श्वांस जो थी वह तपन बन गई
जो रातें मिलन की सपन बन गई
विधै, लाज आयी न तुमको ज़रा
जो थी चूनरी वह कफ़न बन गई
[२५]
पतझर की कहानी को बहार क्या जाने
जीवन की रवानी को मजार क्या जाने
भार डोली का पूछो तो बता देंगे मगर बहारों के
दुल्हन की जवानी को कहार क्या जाने
[२६]
लहर के बिना क्या कोई तरण पा सका
क्या अँधेरे के बिना कोई किरण पा सका
कंटकों की राह पट तन का फटे बिन
फूल का पथ क्या कभी कोई चरण पा सका
[२७]
चाह बालक सी मचल जाती है
सांस चांदी है पिघल जाती है
बहारों के जुड़े न संवारो तो किसका कसूर
उम्र आंधी है निकल जाती है
[२८]
बेबसी का परिचय किनारे से पूछ
दूरियों की कहानी सितारों से पूछ
गीता ओ' क़ुरान में खोजना बेकार है दोस्त
जिन्दगी क्या है किसी गम के मरे से पूछ
[२९]
दीप क्या कहता कभी की जलने का मूड नहीं है
चाँद क्या कहता कभी की ढलने का मूड नहीं है
आदमी दे रहा धोखा मूड के नाम पर जिन्दगी को
पर कौन कहता मौत से की चलने का मूड नहीं है
[३०]
पूनम के घावों में तुमको पाकर आज दवाई रख दूँ
पलकों के पथ में गीतों की लाकर आज कमी रख दूँ
आने वाला शहर कहर हो केवल इस कारण से शायद
जी करता सूने होठों पर गाकर आज रुबाई लिख दूँ
[३१]
मैं तुम्हारे प्यार का उपहार लेकर क्या करूँगा
मैं तुम्हारी मांग का अधिकार लेकर क्या करूँगा
गाज से जो जल गई वीरान में वह डाल हूँ,अब
मैं तेरे मधुमास की मनुहार लेकर क्या करूंगा
[३२]
गुलशन में बहारों की रात ठहर जायेगी
पीर के सावन की बरसात ठहर जायेगी
प्यार के दुल्हे को जरा सजने तो दो
चलती हुई उम्र की बारात ठहर जायेगी
[३३]
कितने प्याले पी डाले कुछ लेखा है क्या
अमृत था या थी वह सुरा कुछ देखा है क्या
जल्दी इतनी करता है क्यों पीने में तू
पीने की सीमा पर भी कुछ रेखा है क्या
[३१]
मैं तुम्हारे प्यार का उपहार लेकर क्या करूँगा
मैं तुम्हारी मांग का अधिकार लेकर क्या करूँगा
गाज से जो जल गई वीरान में वह डाल हूँ,अब
मैं तेरे मधुमास की मनुहार लेकर क्या करूंगा
[३२]
गुलशन में बहारों की रात ठहर जायेगी
पीर के सावन की बरसात ठहर जायेगी
प्यार के दुल्हे को जरा सजने तो दो
चलती हुई उम्र की बारात ठहर जायेगी
[३३]
कितने प्याले पी डाले कुछ लेखा है क्या
अमृत था या थी वह सुरा कुछ देखा है क्या
जल्दी इतनी करता है क्यों पीने में तू
पीने की सीमा पर भी कुछ रेखा है क्या