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मोहक फूल ,मादक मधुगंध , भिन्नातीं मत्त मधुमक्षिकाएं मधुमक्षिकाएँ-सर्वत्र ;रजत चन्द्र –निर्झरचन्द्र–निर्झर, मधु -स्मित , ये जो स्वर्गलोक के वासी ,
सहज प्रसारित करते धरती के घर-घर पर !
मलय पवन की कोमलता की मादक सिहरन ,उड़ा चली संग मन ,पूर्व स्मृतियों के वन , मर्मर सरिताएं सरिताएँ , निर्झर; आलोड़ित झीलें , आकुल -विकल चक्र में भटकें, श्याम भ्रमर -गण,
अगणित कमल झूम कर के इठलाते.. फेनिल बहते जल धारे–झरते,
जैसे स्वर - प्रत्यावर्तित कर देती जो गिरी कन्दरा ; कूजित खग- कुल, करें प्रसारित गान श्रुति-मधुर ,
छिपे वृक्ष में, ह्रदय सुनाते उनके, प्रेम शास्त्र के प्रवचन;
प्रात का अरुण, झाँक रहा अम्बर आनन् में,दिव्य चितेरा, छू भर देता ज्यूँ अपनी स्वर्णिम कूची से , धरती का पट और असीमित रंगों-वर्णों के अनंत गण , छा जाते चहुँ ओर वसुंधरा के आँचल पर, -सत्य, यही है कोष मनोहर-वर्ण-स्वरों काउमढाता उमड़ाता जो एक उदधि मधुमय भावों का.गर्जन,घिरते,फट पड़ते से मेह तुमुल का ,
समर पञ्च तत्त्वों का धरती से अम्बर तक ;
तम उडेलता,- दृष्टि विदारक घोर अन्धेरा ,
प्रलयंकारी पवन प्रचंड भर-भर हुंकारें ; रह रह कर चमके.
दमके घनघोर दामिनी रक्तिम, दारुण तड़ित,मृत्यु की ज्यूँ हो दूत ,
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