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घृणा का गान
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रचनाकार: [[अज्ञेय]]
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<div style="text-align:left;overflow:auto;height:450px;border:none;"><poem>
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान !
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
तुम, जो भाई को अछूत कह, वस्त्र बचाकर भागे !
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<div style="text-align: center;">
तुम, जो बहनें छोड़ बिलखती बढ़े जा रहे आगे !
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
रुककर उत्तर दो, मेरा है अप्रतिहत आह्वान—
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सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान !
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तुम जो बड़े-बड़े गद्दों पर, ऊँची दुकानों में
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
उन्हें कोसते हो जो भूखे मरते हैं खानों में
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
तुम, जो रक्त चूस ठठरी को देते हो जलदान—
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अपरिचित पास आओ
सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान !
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तुम, जो महलों में बैठे दे सकते हो आदेश,
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
'मरने दो बच्चे, ले आओ खींच पकड़कर केश !
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
नहीं देख सकते निर्धन के घर दो मुट्ठी धान—
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान !
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
तुम, जो पाकर शक्ति कलम में हर लेने की प्राण-
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सबमें अपनेपन की माया
'निश्शक्तों की हत्या में कर सकते हो अभिमान,
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अपने पन में जीवन आया
जिनका मत है, 'नीच मरें, दृढ़ रहे हमारा स्थान'—
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सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान !
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तुम, जो मन्दिर में वेदी पर डाल रहे हो फूल
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और इधर कहते जाते हो, 'जीवन क्या है? धूल !'
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तुम जिसकी लोलुपता ने ही धूल किया उद्यान—
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सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान !
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया