अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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‘रस्किन’ और ‘कार्लाइल’ ने, | ‘रस्किन’ और ‘कार्लाइल’ ने, | ||
‘स्मिथ’ को ही धिक्कारा है। | ‘स्मिथ’ को ही धिक्कारा है। | ||
− | ‘रोटी-पानी’ की | + | ‘रोटी-पानी’ की धारा क्या, |
− | मानव जीवन की | + | मानव जीवन की धारा है ॥13॥ |
जो कुबेर की करे साधना, | जो कुबेर की करे साधना, | ||
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‘मुद्रा’ से सम्बन्ध् जताया ॥25॥ | ‘मुद्रा’ से सम्बन्ध् जताया ॥25॥ | ||
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Ruskin and Carlyle too have, | Ruskin and Carlyle too have, | ||
Denounced Smith with all the might. | Denounced Smith with all the might. | ||
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Was directly or indirectly fair. | Was directly or indirectly fair. | ||
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17:32, 27 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
‘रस्किन’ और ‘कार्लाइल’ ने,
‘स्मिथ’ को ही धिक्कारा है।
‘रोटी-पानी’ की धारा क्या,
मानव जीवन की धारा है ॥13॥
जो कुबेर की करे साधना,
सार्थक होता शास्त्र नहीं है।
भौतिकता का संवर्धन ही,
सुखमय जीवन मात्र नहीं है ॥14॥
‘विलियम मारिस’और ‘बर्क’ ने,
निंदनीय था इसे पुकारा।
जीवन में क्या ‘धन’ ही केवल,
होता है बस मात्र सहारा ॥15॥
धीरे-धीरे अर्थशास्त्र का,
नूतन रूप उभरता आया।
और बाद के विद्वानों में,
‘मार्शल’ को सर्वोत्तम पाया ॥16॥
‘मार्शल’ ने फिर अर्थशास्त्र को,
सीमाओं से मुक्त कर दिया।
वैज्ञानिक नव-पृष्ठभूमि पर,
इसका दृढ़ आधार रख दिया ॥17॥
‘मार्शल’ ने तो ‘धन’ से बढ़कर,
‘भौतिक हित’ पर मनन किया है।
जीवन के साधारण क्रम में,
मानव का अध्ययन किया है ॥18॥
वैयक्तिक-सामाजिक ढँग में,
क्रिया को जाँचा जाता है।
भौतिक सुख उपलब्ध हेतु ही,
तथ्यों को आँका जाता है ॥19॥
एक ओर तो अर्थशास्त्र में,
‘धन’ का ही मंथन होता है।
मुख्य रूप से लेकिन मानव,
सुख पर ही चिंतन होता है ॥20॥
अर्थशास्त्र के चिंतन में तो,
सामाजिक प्राणी आते हैं।
सन्यासी-रौबिन्सन क्रूसो,
सीमा पार चले जाते हैं ॥21॥
भेद ‘अनार्थिक’ और ‘आर्थिक’,
बतलाया सब क्रियाओं में।
अर्थशास्त्र का क्षेत्र दिखाया,
सभी ‘आर्थिक’ क्रियाओं में ॥22॥
मार्शल ने ही अर्थशास्त्र को,
‘कला’ और ‘विज्ञान’ बताया।
सुविज्ञान आदर्श शब्द भी,
उस ही ने था साथ लगाया ॥23॥
‘कैनन’, ‘पीगू’, बेवरिज़ भी,
‘मार्शल’ की शृंखला में आते।
अर्थशास्त्र की क्रियाओं का,
सुधरा हुआ रूप दरसाते ॥24॥
सामाजिक कल्याण हेतु ही,
‘पीगू’ ने यह शास्त्र बताया।
प्रत्याक्षा-प्रत्यक्ष रूप में,
‘मुद्रा’ से सम्बन्ध् जताया ॥25॥
Ruskin and Carlyle too have,
Denounced Smith with all the might.
Is the wave of 'bread and butter',
The only life-current of the wight.
The meaningful science is not,
That teaches the love of Mammon.
The evolution of the material,
Is not the gay life's my canon.
William Maurice and Burke,
Did call it unpraiseworthy.
Is wealth alone in human life,
The only help sturdy.
It was gradually that the new,
Form of Economics came round.
And the best among the learned,
Was Marshall later found.
Marshall then freed Economics,
From all limitations and bounds.
And placed it on a solid footing,
With a new scientific background.
Marshall has studied man,
In the common life's career.
He concentrates less upon wealth,
Than the materialistic welfare.
In personal and social ways,
Are judged all the acts.
In view of getting worldly bliss,
Are considered all the facts.
Economics, on one side, is,
Surely the study of wealth.
But more it concentrates upon,
The human weal or health.
Social beings do alone,
Fall within the subject.
Robinson Crusoe and the sages,
Are such as we must neglect.
The difference of Economic and uneconomic,
Was on activities based.
The scope of the subject was,
With economic activities graced.
It was Marshall who declared,
It as Art as well as Science.
It was he who called it,
The ideal and Welfare Science.
Those falling in line with Marshall,
Are Canon, Pigou and Beveridge.
They show us an improved form,
Of the economic activities.
To Pigou the aim of this science,
Was really Social Welfare.
He pointed its relation with wealth,
Was directly or indirectly fair.