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"यादें / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर
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+ | समेटता रहता हूँ | ||
+ | सहेज-सहेज के | ||
+ | महफूज जगहों | ||
+ | पर रखता रहता हूँ | ||
+ | बस यही कहते हुए | ||
+ | बड़ी बेशऊर हैं | ||
+ | तुम्हारी यादें। |
08:36, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
बड़ी
बेशऊर हैं
तुम्हारी यादें
न दस्तक देती हैं
और न ही
आमद का कोई अंदेशा
न कोई इशारा
और न कोई संदेसा
गाहे-ब-गाहे
वक्त-बे-वक्त
दिन-दोपहर
हर वक्त हर पहर
दिल की दहलीज
पर हौले से पाँव रखती है,
थम-थम के पैर
उठाती हुई न जाने
कैसे
किस तरफ से
चुपचाप चली आती हैं
और
एक ही पल में
जैसे पूरा साज़ो-सामाँ
बिखरा के
भाग जाती हैं,
बड़ी देर तक
इस बिखरे
असबाब को
मैं
समेटता रहता हूँ
सहेज-सहेज के
महफूज जगहों
पर रखता रहता हूँ
बस यही कहते हुए
बड़ी बेशऊर हैं
तुम्हारी यादें।