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"यादें / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर

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अब
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बड़ी
दुनिया के मैदान--जंग में
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बेशऊर हैं
जब आ ही गई हो तुम,
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तुम्हारी यादें
तो
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न दस्तक देती हैं
कुछ मसअले
+
और न ही
कुछ नसीहतें
+
आमद का कोई अंदेशा
कुछ फि’करें
+
न कोई इशारा
कुछ अक़ीदतें
+
और न कोई संदेसा
कुछ फ’न
+
गाहे--गाहे
कुछ शरीअतें
+
वक्त-बे-वक्त
अपने बटुए में रख लो।
+
दिन-दोपहर
ये सारी मुहरें
+
हर वक्त हर पहर
मैंने
+
दिल की दहलीज’
और तुम्हारी माँ ने
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पर हौले से पाँव रखती है,
वक्त को ख़र्च करके
+
थम-थम के पैर
ख़रीदी हैं।
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उठाती हुई न जाने
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कैसे
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किस तरफ’ से
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चुपचाप चली आती हैं
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और
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एक ही पल में
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जैसे पूरा साज़ो-सामाँ
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बिखरा के
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भाग जाती हैं,
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बड़ी देर तक
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इस बिखरे
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असबाब को
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मैं
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समेटता रहता हूँ
 +
सहेज-सहेज के
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महफूज जगहों
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पर रखता रहता हूँ
 +
बस यही कहते हुए
 +
बड़ी बेशऊर हैं
 +
तुम्हारी यादें।

08:36, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

बड़ी
बेशऊर हैं
तुम्हारी यादें
न दस्तक देती हैं
और न ही
आमद का कोई अंदेशा
न कोई इशारा
और न कोई संदेसा
गाहे-ब-गाहे
वक्त-बे-वक्त
दिन-दोपहर
हर वक्त हर पहर
दिल की दहलीज’
पर हौले से पाँव रखती है,
थम-थम के पैर
उठाती हुई न जाने
कैसे
किस तरफ’ से
चुपचाप चली आती हैं
और
एक ही पल में
जैसे पूरा साज़ो-सामाँ
बिखरा के
भाग जाती हैं,
बड़ी देर तक
इस बिखरे
असबाब को
मैं
समेटता रहता हूँ
सहेज-सहेज के
महफूज जगहों
पर रखता रहता हूँ
बस यही कहते हुए
बड़ी बेशऊर हैं
तुम्हारी यादें।