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| <div style="background:#eee; padding:10px"> | | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div style="background:#ddd; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:3px inset #aaa; padding:10px"> | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
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− | <div style="font-size:120%; color:#a00000"> | + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | जब आततायी मारे जाते हैं
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> |
− | </div> | + | |
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− | <div> | + | <div style="text-align: center;"> |
− | रचनाकार: [[प्रियदर्शन]] | + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] |
| </div> | | </div> |
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− | <poem> | + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> |
− | एक
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार |
| + | अपरिचित पास आओ |
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− | धूप धम-धम नगाड़ा बजा रही है
| + | आँखों में सशंक जिज्ञासा |
− | बन्दूकें ताने खड़े हैं पेड़
| + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा |
− | सन्नाटे को सूँघ रही है उमसाई हुई जासूस हवा
| + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं |
− | नदी यहाँ से वहाँ तक
| + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा |
− | बारूद की तरह बिछी हुई है
| + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के |
− | आततायियों से युद्ध के लिए तैयार है जंगल
| + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ |
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− | दो
| + | सबमें अपनेपन की माया |
− | | + | अपने पन में जीवन आया |
− | आततायियों का इन्तज़ार करो
| + | </div> |
− | तुम्हें मालूम है, वे आएँगे
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− | तुम्हें मालूम है, वे कहर ढाएँगे
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− | तुम्हारी पीठ पर हैं उनकी चाबुक के ख़ुरदरे निशान
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− | तुम्हारे पेट पर है उनके बूटों के रगड़े जाने से बने दाग़
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− | तुम्हारी यादों में है एक जमा हुआ ख़ौफ़
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− | तुम्हारे दिल में है एक धधकता हुआ गुस्सा
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− | आततायियों का इन्तज़ार करो
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− | तुम्हें मालूम है,
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− | एक दिन वे मारे जाएँगे ।
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− | तुम्हारे हाथों ।
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− | तीन
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− | मरना-मारना दोनों बुरा है
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− | न अत्याचार करो, न अत्याचार सहो
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− | लेकिन जितना पुराना यह सबक है
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− | उतनी ही पुरानी यह सच्चाई
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− | कि अत्याचार भी बचा हुआ है, आततायी भी बचे हुए हैं
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− | कि यह दुनिया डरती रहती है
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− | मरती रहती है
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− | मरने का शोक भी करती रहती है ।
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− | लेकिन जब आततायी मारे जाते हैं,
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− | कोई शोक नहीं करता ।
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− | चार
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− | सबसे मुश्किल होता है आततायियों को पहचानना ।
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− | जो सबसे पहले पहचान लिए जाते हैं,
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− | वे सबसे कमज़ोर या नासमझ होते हैं
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− | वे छोटे और मामूली लोग होते हैं
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− | वे मोहरे जिनका सिर कटा कर बचे रहते हैं भविष्य के बादशाह ।
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− | असली आततायी मीठा बोलते हैं
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− | बोलने से पहले तोलते हैं
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− | हाथों में दस्ताने चढ़ाते हैं
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− | खंजर में सोना मढ़ाते हैं
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− | उन पर अँगुलियों के निशान मिटाते हैं
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− | और बिल्कुल उस वक़्त जब तुम उनसे पूरी तरह बेख़बर या आश्वस्त
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− | अपना अगला क़दम रख रहे होते हो, वे तुम्हें मार डालते हैं
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− | तुम जान भी नहीं पाते कि तुम मारे गए हो
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− | यह ख़ुदक़ुशी है, अख़बार चीख़ते हैं
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− | नहीं, यह बीमारी है, सरकार चीखती है।
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− | कोई डॉक्टर नहीं बताता कि यह बीमारी क्या है।
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− | आततायी बस वादा करता है कि वह बीमारी से भी लड़ेगा ।
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− | पाँच
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− | आततायी से लड़ना आसान नहीं होता
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− | इसके कई ख़तरे होते हैं
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− | पकड़ लिया जाना, पीटा जाना, सताया जाना, मार दिया जाना--
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− | कुछ भी हो सकता है ।
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− | ये छोटे ख़तरे नहीं हैं ।
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− | लेकिन असली और सबसे बड़ा ख़तरा एक और होता है ।
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− | आततायी से लड़ते-लड़ते
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− | हम भी हो जाते हैं आततायी ।
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− | वह मारा जाता है, शहीद हो जाता है
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− | हम मारे जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता ।
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− | | + | |
− | छह
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− | आततायी सबसे ज़्यादा किस चीज़ से डरता है ?
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− | इन्साफ़ से।
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− | जब इन्साफ़ संदिग्ध हो जाए तो वह सबसे ज़्यादा ख़ुश होता है ।
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− | ताउम्र वह इसी कोशिश में जुटा रहता है
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− | कि इन्साफ़ छुपा रहे ।
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− | उसकी सारी इनायतें, सारी रियायतें बस इसीलिए होती हैं
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− | कि इन्साफ़ की तरह पहचानी जाएँ
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− | कि चन्द राहतें पैदा करती रहें इन्साफ़ की उम्मीद
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− | और चलता रहे उसका खेल ।
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− | वह जुर्म भी करे तो इन्साफ़ मालूम हो
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− | और
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− | जब उसे मारा जाए तो वह इन्साफ़ नहीं जुर्म लगे ।
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− | सात
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− | मैं क़ातिलों के साथ नहीं खड़ा हो सकता
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− | हर तरह की हत्या को ख़ारिज करती है मेरी कविता
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− | आततायी से मुक़ाबले के लिए आतयायी हो जाना मुझे मंज़ूर नहीं
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− | लेकिन कोशिश भी करूँ तो आततायी के मारे जाने पर
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− | कोई अफ़सोस मेरे भीतर नहीं उपजता ।
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− | मुझे माफ़ करें ।
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