"दोहे / घाघ" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घाघ }} {{KKCatDoha}} सर्व तपै जो रोहिनी, सर्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatDoha}} | {{KKCatDoha}} | ||
+ | <poem> | ||
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर। | सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर। | ||
− | परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो | + | परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥ |
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। | शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। | ||
− | तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना | + | तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥2॥ |
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय। | भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय। | ||
− | ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा | + | ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय॥3॥ |
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। | अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। | ||
− | चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा | + | चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि॥4॥ |
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय। | सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय। | ||
− | घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै | + | घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय॥5॥ |
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय। | सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय। | ||
− | महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै | + | महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय॥6॥ |
+ | |||
+ | तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख। | ||
+ | वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥7॥ | ||
+ | |||
+ | उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव। | ||
+ | घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥8॥ | ||
+ | |||
+ | सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान। | ||
+ | चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥9॥ | ||
+ | |||
+ | चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ। | ||
+ | चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥10॥ | ||
+ | |||
+ | नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर। | ||
+ | कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥11॥ | ||
+ | |||
+ | सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव। | ||
+ | कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥12॥</poem> |
16:26, 28 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥2॥
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय॥3॥
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि॥4॥
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय॥5॥
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय॥6॥
तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥7॥
उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥8॥
सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥9॥
चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥10॥
नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥11॥
सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥12॥