"धूप / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह }} {{KKCatKavita}} <poem> धूप थ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
केले के हातों से पातों से | केले के हातों से पातों से | ||
केले के थंबों पर | केले के थंबों पर | ||
− | |||
खसर-खसर एक चिकनाहट | खसर-खसर एक चिकनाहट | ||
हवा में मक्खन-सा घोलती है | हवा में मक्खन-सा घोलती है | ||
− | |||
नींद-भरी आलस की भोर का | नींद-भरी आलस की भोर का | ||
कुंज गदराया है | कुंज गदराया है | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 17: | ||
अभी अनजान मानो | अभी अनजान मानो | ||
− | |||
नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के | नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के | ||
हलकी हलकी मगन मगन | हलकी हलकी मगन मगन | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 22: | ||
बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है | बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है | ||
− | |||
चुंबन की मीठी पुचकारियाँ | चुंबन की मीठी पुचकारियाँ | ||
खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं | खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं | ||
− | |||
घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं | घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं | ||
− | + | नाच हैं खिल् खिल् खिल् | |
− | + | ||
− | नाच हैं खिल् खिल् खिल् | + | |
पंक्ति 41: | पंक्ति 34: | ||
सुगंधियाँ | सुगंधियाँ | ||
− | |||
क्यों न उसाँसें भरे | क्यों न उसाँसें भरे | ||
धरती का हिया | धरती का हिया | ||
− | |||
धूप की चुस्कियाँ | धूप की चुस्कियाँ | ||
पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी | पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी | ||
− | |||
कन्-कन् जिये जाय | कन्-कन् जिये जाय | ||
− | |||
थप्-थप् केले के पातों पर हातों से | थप्-थप् केले के पातों पर हातों से | ||
हाथ् दिये जाय | हाथ् दिये जाय | ||
थप थप्... | थप थप्... |
14:16, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
धूप थपेड़े मारती है थप्-थप्
केले के हातों से पातों से
केले के थंबों पर
खसर-खसर एक चिकनाहट
हवा में मक्खन-सा घोलती है
नींद-भरी आलस की भोर का
कुंज गदराया है
यौवन के सपनों से
अभी अनजान मानो
नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के
हलकी हलकी मगन मगन
कि सीटियाँ-सी व्योम बजाता है चारों ओर
बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है
चुंबन की मीठी पुचकारियाँ
खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं
घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं
नाच हैं खिल् खिल् खिल्
कुसुमों-से चरनों का लोच लिये
थिरक रही हैं
भीनी भीनी
सुगंधियाँ
क्यों न उसाँसें भरे
धरती का हिया
धूप की चुस्कियाँ
पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी
कन्-कन् जिये जाय
थप्-थप् केले के पातों पर हातों से
हाथ् दिये जाय
थप थप्...