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"दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|
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तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।
  
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|<br>
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इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त था|<br><br>
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खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त था।
  
इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,<br>
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मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त था|<br><br>
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कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त था।
  
मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,<br>
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जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त था|<br><br>
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वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त था।
  
जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,<br>
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उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त था|<br><br>
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जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त था।
  
उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,<br>
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शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,
जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था|<br><br>
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हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था।
 
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शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,<br>
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हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था|<br><br>
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10:50, 11 जून 2014 के समय का अवतरण

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।

इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।

मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,
जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था।

शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,
हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था।