भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शाम / निलिम कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निलिम कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=निलिम कुमार | |रचनाकार=निलिम कुमार | ||
− | |अनुवादक= | + | |अनुवादक=अनिल जनविजय |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
जिस शाम ने कल | जिस शाम ने कल | ||
मृतक तारों की पहाड़ी पर खड़े होकर | मृतक तारों की पहाड़ी पर खड़े होकर | ||
− | दो | + | दो बून्द खून मुझसे माँगा था । |
कल नहीं जानता था मैं | कल नहीं जानता था मैं | ||
− | उस शाम, उस पहाड़ और शाम के रहस्य को | + | उस शाम, उस पहाड़ और शाम के रहस्य को । |
आज इन किताबों के बीच | आज इन किताबों के बीच | ||
− | एक शाम मरी हुई है | + | एक शाम मरी हुई है । |
जिस शाम के नीचे | जिस शाम के नीचे | ||
क्षण भर के लिए | क्षण भर के लिए | ||
जी उठती है वह पहाड़ी | जी उठती है वह पहाड़ी | ||
− | और मेरी चेतना में मृत्यु | + | और मेरी चेतना में मृत्यु । |
+ | |||
+ | '''मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय''' | ||
</poem> | </poem> |
01:51, 30 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
पुस्तकालय में एक शाम मरी हुई है
जिस शाम ने कल
मृतक तारों की पहाड़ी पर खड़े होकर
दो बून्द खून मुझसे माँगा था ।
कल नहीं जानता था मैं
उस शाम, उस पहाड़ और शाम के रहस्य को ।
आज इन किताबों के बीच
एक शाम मरी हुई है ।
जिस शाम के नीचे
क्षण भर के लिए
जी उठती है वह पहाड़ी
और मेरी चेतना में मृत्यु ।
मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय