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शाम / निलिम कुमार
Kavita Kosh से
पुस्तकालय में एक शाम मरी हुई है
जिस शाम ने कल
मृतक तारों की पहाड़ी पर खड़े होकर
दो बून्द खून मुझसे माँगा था ।
कल नहीं जानता था मैं
उस शाम, उस पहाड़ और शाम के रहस्य को ।
आज इन किताबों के बीच
एक शाम मरी हुई है ।
जिस शाम के नीचे
क्षण भर के लिए
जी उठती है वह पहाड़ी
और मेरी चेतना में मृत्यु ।
मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय