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"खिड़की / पूर्णिमा वर्मन" के अवतरणों में अंतर
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बहुत दिनों बाद | बहुत दिनों बाद | ||
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खिड़की खोली थी | खिड़की खोली थी | ||
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साफ-साफ दिखता काँच के उस पार | साफ-साफ दिखता काँच के उस पार | ||
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लगता था नयी धूप आएगी | लगता था नयी धूप आएगी | ||
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फूल खिल जाएँगे | फूल खिल जाएँगे | ||
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नई पत्तियाँ उगेंगी | नई पत्तियाँ उगेंगी | ||
− | + | वसंत फिर आएगा धीरे-धीरे | |
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एक काँच खिसकाते ही | एक काँच खिसकाते ही | ||
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मिला शीतल झोंका | मिला शीतल झोंका | ||
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धीरे-धीरे क्यारी में फूल खिलने लगे | धीरे-धीरे क्यारी में फूल खिलने लगे | ||
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कि जैसे वसंत समाया था हर कण में | कि जैसे वसंत समाया था हर कण में | ||
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अचानक गहराया नभ | अचानक गहराया नभ | ||
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एक तेज़ झोंका आया | एक तेज़ झोंका आया | ||
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रेत ही रेत | रेत ही रेत | ||
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बिखर गई फूलों पर - आँखों में | बिखर गई फूलों पर - आँखों में | ||
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छितरायी पंखुड़ियाँ पत्तियाँ | छितरायी पंखुड़ियाँ पत्तियाँ | ||
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छलछलायी आँखें | छलछलायी आँखें | ||
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हम अक्सर भूल जाते हैं | हम अक्सर भूल जाते हैं | ||
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मौसम बदला करते हैं | मौसम बदला करते हैं | ||
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तो क्या मुझे | तो क्या मुझे | ||
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खिड़की खोलनी ही नहीं थी? | खिड़की खोलनी ही नहीं थी? | ||
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या सिखा गई मुझको | या सिखा गई मुझको | ||
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जीवन का एक अध्याय। | जीवन का एक अध्याय। | ||
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09:24, 28 जून 2014 के समय का अवतरण
बहुत दिनों बाद
खिड़की खोली थी
साफ-साफ दिखता काँच के उस पार
लगता था नयी धूप आएगी
फूल खिल जाएँगे
नई पत्तियाँ उगेंगी
वसंत फिर आएगा धीरे-धीरे
एक काँच खिसकाते ही
मिला शीतल झोंका
धीरे-धीरे क्यारी में फूल खिलने लगे
कि जैसे वसंत समाया था हर कण में
अचानक गहराया नभ
एक तेज़ झोंका आया
रेत ही रेत
बिखर गई फूलों पर - आँखों में
छितरायी पंखुड़ियाँ पत्तियाँ
छलछलायी आँखें
हम अक्सर भूल जाते हैं
मौसम बदला करते हैं
तो क्या मुझे
खिड़की खोलनी ही नहीं थी?
या सिखा गई मुझको
जीवन का एक अध्याय।