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"रजमतिया के चिट्टी / भोजपुरी" के अवतरणों में अंतर

 
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|रचनाकार= Triloki nath upadhyaya (Gorakhpur)
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|रचनाकार=त्रिलोकीनाथ उपाध्याय (गोरखपुर)
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लिखि देई स्वस्तीय श्री चिट्ठी राउर पवलीं,
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पाँच सोरह रूपइया तऽ रउरे पठवलीं।
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एतनो से कम नाहीं होवे ले विपतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥1॥
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कबरी छेगड़िया हमार बेरमाइल,
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पांड़े जी क झबरा पिलउआ हेराइल।
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कोहड़ा पर पाला मरलसि, लागे नाहीं बतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥2॥
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लिखि देई जाड़ा बा, बनवां लीहें रजाई,
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खोंखी आइल मरिगे, समुनरी के माई।
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बड़े जोर बेराम बा, निरंजन बाबा के नतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥3॥
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पछुआ पवन चले सिहरे परनवाँ,
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छन-छन भरि-भरि आवेला नयनवाँ।
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दिनवों त बीतेला, कटेले नाहीं रतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥4॥
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लिखि देईं बिरही फगुनवों नेराइल,
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बउरल अमवाँ, महुअवाँ गदाइल।
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सेल्हा में अदउआ गुहैले भनमतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥5॥
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जै पइसा आइल तै सौ राहे गइल सैंया,
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किनि नाहीं पवली हम अइया के दवइया।
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ससुई ननदि रोज कहें सौ-सौ बतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥6॥
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कई बेर पूछलें, मलगुजरिया पियादा,
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कहलीं निबका देब अइहे उतमी के दादा।
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नेइये तरे हउदी सटवलसि रमगतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥7॥
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लिखि देईं, भंगरा मदरसा पै जाला,
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पंडित जी के  परसों उठा ले आइल ताला।
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ओके निरगुनवां, मिलल बा संघतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥8॥
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छोटका के नरखा, मझिलका के नाहीं,
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बुधनी सयान होगे, सारी वोके चाही।
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काठे के करेजा कइलें बजरे कै छतिया,
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥9॥
  
छोटकी गोतिनिया के तनवा के बतिया,<br>
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खुदै हुसियार हवें ढेर का लिखाईं,  
पतिया रोई-रोई ना, लिखावे रजमतिया।<br>
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कगजा पै केतनी कलमि दउराईं।
सोस्ती श्री चिट्टी रउरा भेजनी तेमे लिखल,<br>
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कुलि-कुलि करिहें, बेसहिहें न सवतिया,  
सोरे पचे अस्सी रोपेया, भेजनी तवन मिलल<br>
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रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥10॥
ओतना से नाही कटी, भारी बा बिपतिया। पतिया...<br>
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</poem>
छोटकी के झूला फाटल, जेठकी के नाहीं,<br>
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[दयानन्द पाण्डेय द्वारा प्रेषित संशोधित वर्जन]
बिटिया सेयान भइल, ओकरो लूगा चाही,<br>
+
अबगे धरत बाटे कोंहड़ा में बतिया, पतिया ...<br>
+
रोज -रोज मंगरा मदरसा जाला,<br>
+
एक दिन तुरले रहे मौलवी के ताला,<br>
+
ओकरा भेंटाइल बा करीमना संघतिया। पतिया...<br>
+
पांडे जी के जोड़ा बैला गइलेसऽ बिकाइ,<br>
+
मेलवा में गइले त पिलवा भुलाइल,<br>
+
चार डंडा मरले मंगरू, भाग गइल बेकतिया। पतिया...<br>
+
जाड़ा के महीना बा, रजाई लेम सिआइ,<br>
+
जाड़ावा से मर गइल दुरपतिया के माई,<br>
+
बड़ा जोर बीमार बा भिखारी काका के नतिया। पतिया...<br>
+
कबरी बकरिया रात-भर मेंमिआइल,<br>
+
छोटका पठरुआ लिखीं कतना में बिकाई,<br>
+
दुखवा के परले खिंचत बानी जँतिया। पतिया...<br><br>
+

12:55, 28 जून 2025 के समय का अवतरण

लिखि देई स्वस्तीय श्री चिट्ठी राउर पवलीं,
पाँच सोरह रूपइया तऽ रउरे पठवलीं।
एतनो से कम नाहीं होवे ले विपतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥1॥

कबरी छेगड़िया हमार बेरमाइल,
पांड़े जी क झबरा पिलउआ हेराइल।
कोहड़ा पर पाला मरलसि, लागे नाहीं बतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥2॥

लिखि देई जाड़ा बा, बनवां लीहें रजाई,
खोंखी आइल मरिगे, समुनरी के माई।
बड़े जोर बेराम बा, निरंजन बाबा के नतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥3॥

पछुआ पवन चले सिहरे परनवाँ,
छन-छन भरि-भरि आवेला नयनवाँ।
दिनवों त बीतेला, कटेले नाहीं रतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥4॥

लिखि देईं बिरही फगुनवों नेराइल,
बउरल अमवाँ, महुअवाँ गदाइल।
सेल्हा में अदउआ गुहैले भनमतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥5॥

जै पइसा आइल तै सौ राहे गइल सैंया,
किनि नाहीं पवली हम अइया के दवइया।
ससुई ननदि रोज कहें सौ-सौ बतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥6॥

कई बेर पूछलें, मलगुजरिया पियादा,
कहलीं निबका देब अइहे उतमी के दादा।
नेइये तरे हउदी सटवलसि रमगतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया ॥7॥

लिखि देईं, भंगरा मदरसा पै जाला,
पंडित जी के परसों उठा ले आइल ताला।
ओके निरगुनवां, मिलल बा संघतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥8॥

छोटका के नरखा, मझिलका के नाहीं,
बुधनी सयान होगे, सारी वोके चाही।
काठे के करेजा कइलें बजरे कै छतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥9॥

खुदै हुसियार हवें ढेर का लिखाईं,
कगजा पै केतनी कलमि दउराईं।
कुलि-कुलि करिहें, बेसहिहें न सवतिया,
रोय-रोय पतिया लिखावे रजमतिया॥10॥

[दयानन्द पाण्डेय द्वारा प्रेषित संशोधित वर्जन]