Last modified on 14 अप्रैल 2018, at 20:51

"कौन किसे कब रोक सका है / मानोशी" के अवतरणों में अंतर

 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=मानोशी
 
|रचनाकार=मानोशी
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=उन्मेष / मानोशी
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
कौन किसे कब रोक सका है
 +
 
दर्प पतन का प्रथम घोष है,
 
दर्प पतन का प्रथम घोष है,
 
गिरने से पहले का इंगित,
 
गिरने से पहले का इंगित,
भाग्य ने जिस जगह बिठाया
+
बैठाया जिस जगह भाग्य ने
 
छिन जायेगा सब कुछ संचित,
 
छिन जायेगा सब कुछ संचित,
 
दो क्षण के इस जीवन में क्या
 
दो क्षण के इस जीवन में क्या

20:51, 14 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

कौन किसे कब रोक सका है

दर्प पतन का प्रथम घोष है,
गिरने से पहले का इंगित,
बैठाया जिस जगह भाग्य ने
छिन जायेगा सब कुछ संचित,
दो क्षण के इस जीवन में क्या
द्वेष-द्वंद को सींच रहे हो,
जिसने ठान लिया होगा फिर
कौन उसे तब टोक सका है।

बड़े नाम हो, तुच्छ काम से
मान तुम्हारा कम होता है,
गुरु-महिमा की बातें झूठी
सच पर भी अब भ्रम होता है,
बाधा बन कर तन सकते हो
चाहो ज्वाला बन सकते हो
लेकिन याद रखो पत्थर को
कौन आग में झोंक सका है।

कौन किसे कब रोक सका है।