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"प्रिय! सान्ध्य गगन / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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प्रिय ! सान्ध्य गगन
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मेरा जीवन!
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यह क्षितिज बना धुँधला विराग,
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नव अरुण अरुण मेरा सुहाग,
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छाया सी काया वीतराग,
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सुधिभीने स्वप्न रँगीले घन!
  
प्रिय ! सान्ध्य गगन<br>
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साधों का आज सुनहलापन,
मेरा जीवन!<br>
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घिरता विषाद का तिमिर सघन,
यह क्षितिज बना धुँधला विराग,<br>
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सन्ध्या का नभ से मूक मिलन,
नव अरुण अरुण मेरा सुहाग,<br>
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यह अश्रुमती हँसती चितवन!
छाया सी काया वीतराग,<br>
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सुधिभीने स्वप्न रँगीले घन!<br><br>
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साधों का आज सुनहलापन,<br>
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लाता भर श्वासों का समीर,
घिरता विषाद का तिमिर सघन,<br>
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जग से स्मृतियों का गन्ध धीर,
सन्ध्या का नभ से मूक मिलन,<br>
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सुरभित हैं जीवन-मृत्यु-तीर,
यह अश्रुमती हँसती चितवन!<br><br>
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रोमों में पुलकित कैरव-वन!
  
लाता भर श्वासों का समीर,<br>
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अब आदि अन्त दोनों मिलते,
जग से स्मृतियों का गन्ध धीर,<br>
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रजनी-दिन-परिणय से खिलते,
सुरभित हैं जीवन-मृत्यु-तीर,<br>
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आँसू मिस हिम के कण ढुलते,
रोमों में पुलकित कैरव-वन!<br><br>
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ध्रुव आज बना स्मृति का चल क्षण!
  
अब आदि अन्त दोनों मिलते,<br>
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इच्छाओं के सोने से शर,
रजनी-दिन-परिणय से खिलते,<br>
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किरणों से द्रुत झीने सुन्दर,
आँसू मिस हिम के कण ढुलते,<br>
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सूने असीम नभ में चुभकर-
ध्रुव आज बना स्मृति का चल क्षण!<br><br>
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बन बन आते नक्षत्र-सुमन!
  
इच्छाओं के सोने से शर,<br>
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घर आज चले सुख-दु:ख विहग!
किरणों से द्रुत झीने सुन्दर,<br>
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तम पोंछ रहा मेरा अग जग;
सूने असीम नभ में चुभकर-<br>
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छिप आज चला वह चित्रित मग,
बन बन आते नक्षत्र-सुमन!<br><br>
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उतरो अब पलकों में पाहुन!
 
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घर आज चले सुख-दु:ख विहग!<br>
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तम पोंछ रहा मेरा अग जग;<br>
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छिप आज चला वह चित्रित मग,<br>
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उतरो अब पलकों में पाहुन!<br><br>
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22:32, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

प्रिय ! सान्ध्य गगन
मेरा जीवन!
यह क्षितिज बना धुँधला विराग,
नव अरुण अरुण मेरा सुहाग,
छाया सी काया वीतराग,
सुधिभीने स्वप्न रँगीले घन!

साधों का आज सुनहलापन,
घिरता विषाद का तिमिर सघन,
सन्ध्या का नभ से मूक मिलन,
यह अश्रुमती हँसती चितवन!

लाता भर श्वासों का समीर,
जग से स्मृतियों का गन्ध धीर,
सुरभित हैं जीवन-मृत्यु-तीर,
रोमों में पुलकित कैरव-वन!

अब आदि अन्त दोनों मिलते,
रजनी-दिन-परिणय से खिलते,
आँसू मिस हिम के कण ढुलते,
ध्रुव आज बना स्मृति का चल क्षण!

इच्छाओं के सोने से शर,
किरणों से द्रुत झीने सुन्दर,
सूने असीम नभ में चुभकर-
बन बन आते नक्षत्र-सुमन!

घर आज चले सुख-दु:ख विहग!
तम पोंछ रहा मेरा अग जग;
छिप आज चला वह चित्रित मग,
उतरो अब पलकों में पाहुन!