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"रागभीनी तू सजनि निश्वास / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
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लोचनों में क्या मदिर नव?
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देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव!
  
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br>
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झूलते चितवन गुलाबी-
लोचनों में क्या मदिर नव?<br>
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में चले घर खग हठीले!
देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव!<br><br>
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
  
झूलते चितवन गुलाबी-<br>
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छोड़ किस पाताल का पुर?
में चले घर खग हठीले!<br>
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राग से बेसुध, चपल सजीले नयन में भर,
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
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रात नभ के फूल लाई,
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आँसुओं से कर सजीले!
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
  
छोड़ किस पाताल का पुर?<br>
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आज इन तन्द्रिल पलों में!
राग से बेसुध, चपल सजीले नयन में भर,<br>
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उलझती अलकें सुनहली असित निशि के कुन्तलों में!
रात नभ के फूल लाई,<br>
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आँसुओं से कर सजीले!<br>
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
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आज इन तन्द्रिल पलों में!<br>
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सजनि नीलमरज भरे
उलझती अलकें सुनहली असित निशि के कुन्तलों में!<br><br>
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रँग चूनरी के अरुण पीले!
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
  
सजनि नीलमरज भरे<br>
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रेख सी लघु तिमिर लहरी,
रँग चूनरी के अरुण पीले!<br>
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चरण छू तेरे हुई है सिन्धु सीमाहीन गहरी!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
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रेख सी लघु तिमिर लहरी,<br>
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गीत तेरे पार जाते
चरण छू तेरे हुई है सिन्धु सीमाहीन गहरी!<br><br>
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बादलों की मृदु तरी ले!
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
  
गीत तेरे पार जाते<br>
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कौन छायालोक की स्मृति,
बादलों की मृदु तरी ले!<br>
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कर रही रङ्गीन प्रिय के द्रुत पदों की अंक-संसृति,
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
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कौन छायालोक की स्मृति,<br>
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सिहरती पलकें किये-
कर रही रङ्गीन प्रिय के द्रुत पदों की अंक-संसृति,<br><br>
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देती विहँसते अधर गीले!
 
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
सिहरती पलकें किये-<br>
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देती विहँसते अधर गीले!<br>
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रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
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22:35, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
लोचनों में क्या मदिर नव?
देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव!

झूलते चितवन गुलाबी-
में चले घर खग हठीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

छोड़ किस पाताल का पुर?
राग से बेसुध, चपल सजीले नयन में भर,
रात नभ के फूल लाई,
आँसुओं से कर सजीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

आज इन तन्द्रिल पलों में!
उलझती अलकें सुनहली असित निशि के कुन्तलों में!

सजनि नीलमरज भरे
रँग चूनरी के अरुण पीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

रेख सी लघु तिमिर लहरी,
चरण छू तेरे हुई है सिन्धु सीमाहीन गहरी!

गीत तेरे पार जाते
बादलों की मृदु तरी ले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

कौन छायालोक की स्मृति,
कर रही रङ्गीन प्रिय के द्रुत पदों की अंक-संसृति,

सिहरती पलकें किये-
देती विहँसते अधर गीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!