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हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
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रचनाकार: [[द्विजेन्द्र "द्विज"]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं
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अपरिचित पास आओ
  
हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी
+
सबमें अपनेपन की माया
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं
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अपने पन में जीवन आया
 
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कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें
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बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं
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कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं
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जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है
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वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की
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कि जिनके साये ही दम-ख़म पिघाल देते हैं
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया