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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
वे किसान की नई बहू की आँखें</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
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रचनाकार: [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
नहीं जानती जो अपने को खिली हुई --
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
विश्व-विभव से मिली हुई --
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अपरिचित पास आओ
नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को --
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नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
वे किसान की नई बहू की आँखें
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें ;
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से --
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से ।
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया