(New page: जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,<br> इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है, <br> क्य...)  | 
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| − | जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,  | + | {{KKGlobal}}  | 
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| − | क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,   | + | |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र  | 
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| − | + | जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,  | |
| − | बड़े सुखों को देखकर   | + | इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,    | 
| − | मेरे बच्चे सहम जाते हैं,  | + | क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,    | 
| − | मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें   | + | बड़े सुख आ जाएँ घर में  | 
| − | सिखा   | + | तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूँ।  | 
| − | मगर नहीं  | + | |
| − | मैंने देखा है कि जब कभी   | + | यहाँ एक बात    | 
| − | कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में  | + | इससे भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,  | 
| − | बाजार में या किसी के घर,  | + | बड़े सुखों को देखकर    | 
| − | तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,  | + | मेरे बच्चे सहम जाते हैं,  | 
| − | किंतु साथ साथ डर भी आ गया   | + | मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें    | 
| − | बल्कि कहना चाहिये   | + | सिखा दूँ कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।  | 
| − | खुशी झलकी है, डर छा गया है,   | + | |
| − | उनका उठना उनका बैठना  | + | मगर नहीं  | 
| − | कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,  | + | मैंने देखा है कि जब कभी    | 
| − | और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर  | + | कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में  | 
| − | कि मैं उनसे कुछ कह नहीं   | + | बाजार में या किसी के घर,  | 
| − | मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,  | + | तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,  | 
| − | इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू   | + | किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।  | 
| − | इस झूले के पेंग निराले हैं   | + | |
| − | बेशक इस पर झूलो,   | + | बल्कि कहना चाहिये    | 
| − | मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते   | + | खुशी झलकी है, डर छा गया है,    | 
| − | खड़े खड़े ताकते हैं,   | + | उनका उठना उनका बैठना  | 
| − | अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता   | + | कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,  | 
| − | तो चीख मार कर भागते हैं,   | + | और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर  | 
| − | बड़े बड़े सुखों की इच्छा   | + | कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।  | 
| − | इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,  | + | |
| − | कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था  | + | मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,  | 
| − | अब मैंने उन्हें फोड़ दी   | + | इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।  | 
| + | इस झूले के पेंग निराले हैं    | ||
| + | बेशक इस पर झूलो,    | ||
| + | मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते    | ||
| + | खड़े खड़े ताकते हैं,    | ||
| + | अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ।   | ||
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18:55, 29 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है, 
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, 
बड़े सुख आ जाएँ घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूँ।
यहाँ एक बात 
इससे भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर 
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें 
सिखा दूँ कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।
मगर नहीं
मैंने देखा है कि जब कभी 
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में
बाजार में या किसी के घर,
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।
बल्कि कहना चाहिये 
खुशी झलकी है, डर छा गया है, 
उनका उठना उनका बैठना
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,
और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।
मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।
इस झूले के पेंग निराले हैं 
बेशक इस पर झूलो, 
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते 
खड़े खड़े ताकते हैं, 
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ। 
तो चीख मार कर भागते हैं, 
बड़े बड़े सुखों की इच्छा 
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।