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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
मौसियाँ</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
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रचनाकार: [[अनामिका]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
वे बारिश में धूप की तरह आती हैं -–
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
थोड़े समय के लिए और अचानक
+
अपरिचित पास आओ
हाथ के बुने स्वेटर, इन्द्रधनुष, तिल के लड्डू
+
और सधोर की साड़ी लेकर
+
वे आती हैं झूला झुलाने
+
पहली मितली की ख़बर पाकर
+
और गर्भ सहलाकर
+
लेती हैं अन्तरिम रपट
+
गृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों की ।
+
  
झाड़ती हैं जाले, संभालती हैं बक्से
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
मेहनत से सुलझाती हैं भीतर तक उलझे बाल
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
कर देती हैं चोटी-पाटी
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
और डाँटती भी जाती हैं कि री पगली तू
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
किस धुन में रहती है
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
कि बालों की गाँठें भी तुझसे
+
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
ठीक से निकलती नहीं ।
+
  
बालों के बहाने
+
सबमें अपनेपन की माया
वे गाँठें सुलझाती हैं जीवन की
+
अपने पन में जीवन आया
करती हैं परिहास, सुनाती हैं क़िस्से
+
और फिर हँसती-हँसाती
+
दबी-सधी आवाज़ में बताती जाती हैं -–
+
चटनी-अचार-मूंग-बड़ियाँ और बेस्वाद सम्बन्ध
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चटपटा बनाने के गुप्त मसाले और नुस्खे -–
+
सारी उन तकलीफ़ों के जिन पर
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ध्यान भी नहीं जाता औरों का ।
+
 
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आँखों के नीचे धीरे-धीरे
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जिसके पसर जाते हैं साए
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और गर्भ से रिसते हैं महीनों चुपचाप -–
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ख़ून के आँसू-से
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चालीस के आसपास के अकेलेपन के उन
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काले-कत्थई चकत्तों का
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मौसियों के वैद्यक में
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एक ही इलाज है -–
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हँसी और कालीपूजा
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और पूरे मोहल्ले की अम्मागिरी ।
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बीसवीं शती की कूड़ागाड़ी
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लेती गई खेत से कोड़कर अपने
+
जीवन की कुछ ज़रूरी चीज़ें -–
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जैसे मौसीपन, बुआपन, चाचीपन्थी,
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अम्मागिरी मग्न सारे भुवन की ।
+
 
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया