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एक और / रमेश रंजक
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14:06, 20 जुलाई 2014
<poem>
एक और टूटी दहलीज
बूढ़े घर की ।
थके-थके पाँवों को और मिले
धुँधलाई, हर उजली चीज़
आडम्बर की ।
—
</poem>
अनिल जनविजय
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