"मर्यादाएँ हम तोड़ेंगे / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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तीन-चार आत्महत्याओं | तीन-चार आत्महत्याओं | ||
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व हजारों हत्याओं के बाद | व हजारों हत्याओं के बाद | ||
− | + | एक कब्रगाह में | |
− | एक कब्रगाह में | + | |
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जन्म ले रहे हैं रामलला | जन्म ले रहे हैं रामलला | ||
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और बधावा | और बधावा | ||
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नहीं बज रहा इस बार | नहीं बज रहा इस बार | ||
− | + | विधवाएं | |
− | विधवाएं | + | |
− | + | ||
सरापा जरूर भेज रही हैं | सरापा जरूर भेज रही हैं | ||
− | + | बधावा बजता ही | |
− | बधावा | + | |
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तो क्या होता राम | तो क्या होता राम | ||
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अयोध्या वनवास ही देती तुम्हे | अयोध्या वनवास ही देती तुम्हे | ||
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फिर सीता बिन सूनी रसोई में | फिर सीता बिन सूनी रसोई में | ||
− | |||
उसकी सोने की मूर्ति देख कितने दिन जीते | उसकी सोने की मूर्ति देख कितने दिन जीते | ||
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अब तो वन भी नहीं रहे | अब तो वन भी नहीं रहे | ||
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कंकरीट के इस जंगल में कहां मिलेंगे वाल्मीकि | कंकरीट के इस जंगल में कहां मिलेंगे वाल्मीकि | ||
− | |||
तब लव-कुश को जन्म दिये बगैर ही | तब लव-कुश को जन्म दिये बगैर ही | ||
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मर जाएगी सीता | मर जाएगी सीता | ||
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पर तुम्हे क्या | पर तुम्हे क्या | ||
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स्त्री के कष्ट से तो टूटती नहीं हैं तुम्हारी मर्यादाएं | स्त्री के कष्ट से तो टूटती नहीं हैं तुम्हारी मर्यादाएं | ||
− | + | पुरोहित नियंत्रित राजसत्ताएं ही | |
− | पुरोहित नियंत्रित राजसत्ताएं ही | + | |
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तोड पाती हैं उसे | तोड पाती हैं उसे | ||
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शबदी के जूठे बेर खाने वाले के हाथों | शबदी के जूठे बेर खाने वाले के हाथों | ||
− | |||
शम्बूक वध का आदेश पारित कराकर | शम्बूक वध का आदेश पारित कराकर | ||
− | + | अब तो ना शूद्र हैं ना ही ऋषि | |
− | अब तो ना शूद्र हैं ना ही ऋषि | + | |
− | + | ||
बस राजेनता हैं | बस राजेनता हैं | ||
− | + | पर ना होंगे लव-कुश तो क्या | |
− | पर ना होंगे लव-कुश | + | हम भी तो तुम्हारे बेटे हैं राम हम तोडेंगे मर्यादाएं |
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− | हम भी तो तुम्हारे बेटे हैं राम | + | |
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ग्रसेंगे हम | ग्रसेंगे हम | ||
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बंदरों-भालुओं से अंटी अयोध्या को | बंदरों-भालुओं से अंटी अयोध्या को | ||
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पीटेंगे बांधकर | पीटेंगे बांधकर | ||
− | + | इसी कंकरीट के जंगल में । | |
− | इसी कंकरीट के जंगल में । | + | |
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1996 | 1996 | ||
+ | </poem> |
00:29, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
तीन-चार आत्महत्याओं
व हजारों हत्याओं के बाद
एक कब्रगाह में
जन्म ले रहे हैं रामलला
और बधावा
नहीं बज रहा इस बार
विधवाएं
सरापा जरूर भेज रही हैं
बधावा बजता ही
तो क्या होता राम
अयोध्या वनवास ही देती तुम्हे
फिर सीता बिन सूनी रसोई में
उसकी सोने की मूर्ति देख कितने दिन जीते
अब तो वन भी नहीं रहे
कंकरीट के इस जंगल में कहां मिलेंगे वाल्मीकि
तब लव-कुश को जन्म दिये बगैर ही
मर जाएगी सीता
पर तुम्हे क्या
स्त्री के कष्ट से तो टूटती नहीं हैं तुम्हारी मर्यादाएं
पुरोहित नियंत्रित राजसत्ताएं ही
तोड पाती हैं उसे
शबदी के जूठे बेर खाने वाले के हाथों
शम्बूक वध का आदेश पारित कराकर
अब तो ना शूद्र हैं ना ही ऋषि
बस राजेनता हैं
पर ना होंगे लव-कुश तो क्या
हम भी तो तुम्हारे बेटे हैं राम हम तोडेंगे मर्यादाएं
ग्रसेंगे हम
बंदरों-भालुओं से अंटी अयोध्या को
पीटेंगे बांधकर
इसी कंकरीट के जंगल में ।
1996