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| प्रीति-रीति की सार सलौनी, वेद-विदित गुनखानी। | प्रीति-रीति की सार सलौनी, वेद-विदित गुनखानी। | ||
| मेरी एकमात्र जीवननिधि रस-रंजिनि, रसखानी॥1॥ | मेरी एकमात्र जीवननिधि रस-रंजिनि, रसखानी॥1॥ | ||
| − | स्याम-चन्द्र की चटुल | + | स्याम-चन्द्र की चटुल चकोरी, अति भोरी जग जानी। | 
| − | ताके पद पंकज की अलिनी ललिनी | + | ताके पद पंकज की अलिनी ललिनी मैं मन-मानी॥2॥ | 
| कलित कान्ति ताकी लखि सहमहिं रती-सती ब्रह्मानी। | कलित कान्ति ताकी लखि सहमहिं रती-सती ब्रह्मानी। | ||
| अति उदार, रस-सार, रँगीली, उमा-रमा वरदानी॥3॥ | अति उदार, रस-सार, रँगीली, उमा-रमा वरदानी॥3॥ | ||
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| दीन मीन तुव रति-सरवरकी, तामें रहहुँ समानी॥5॥ | दीन मीन तुव रति-सरवरकी, तामें रहहुँ समानी॥5॥ | ||
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11:24, 24 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
राग भटियार, तीन ताल  4.9.1974
मेरी स्वामिनि राधा रानी।
रसिकराय की प्रानजीविनी, रसिकन की रजधानी॥
प्रीति-रीति की सार सलौनी, वेद-विदित गुनखानी।
मेरी एकमात्र जीवननिधि रस-रंजिनि, रसखानी॥1॥
स्याम-चन्द्र की चटुल चकोरी, अति भोरी जग जानी।
ताके पद पंकज की अलिनी ललिनी मैं मन-मानी॥2॥
कलित कान्ति ताकी लखि सहमहिं रती-सती ब्रह्मानी।
अति उदार, रस-सार, रँगीली, उमा-रमा वरदानी॥3॥
सदा-सदा मैं चेरी तेरी, तव रति-रस उमहानी।
चरन-सरन में सखि स्वामिनी! करहु सदा मन-मानी॥4॥
तुम ही मरी एकमात्र गति और न मैं कोउ जानी।
दीन मीन तुव रति-सरवरकी, तामें रहहुँ समानी॥5॥